यह संकल्प शिक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय वित्त सुविधा (IFFEd) ने किया है जिसके सहारे वैश्विक शिक्षणिक आपदा से निपटा जाएगा, जोकि हालात के अनुसार भीषण तो है मगर अक्सर इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है.
इस दुनिया भर में लगभग 25 करोड़ बच्चे, स्कूली शिक्षा से वंचित हैं, जबकि 80 करोड़ से अधिक युवजन, यानि विश्व की आधी युवा जनसंख्या – आधुनिक कार्यबल का हिस्सा बने बिना ही, स्कूल से बाहर हो जाएगी.
इस रक़म के ज़रिए, शिक्षा के क्षेत्र में धन की भारी क़िल्लत को दूर करने में भी मदद की जाएगी, जोकि 2030 तक, हर वर्ष लगभग $97 अरब आँकी गई है.
एक ऐतिहासिक निवेश
वैश्विक शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन का कहना है कि इस संकल्प में 2025 तक की अवधि तक रक़म मुहैया कराई जाएगी जोकि, “दशकों में वैश्विक शिक्षा व कौशल विकास में एक मुश्त सबसे बड़ा निवेश है.”
गॉर्डन ब्राउन IFFEd के भी अध्यक्ष हैं. इस सार्वजनिक-निजी भागेदारी वाली अन्तरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था में, विशेष रूप से निम्न-मध्य-आय वाले देशों (LMICs) में शिक्षा के क्षेत्र में धन की क़िल्लत को दूर करने में मदद की जाएगी.
इन देशों में एक अरब 20 करोड़ बच्चे और युवजन बसते हैं, जोकि इनकी वैश्विक आबादी का लगभग आधा हिस्सा है.
इन देशों में भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और केनया भी शामिल हैं, जिन्हें नज़र से ओझल क़रार दिया गया है.
इन देशों को अब शिक्षा के लिए अनुदान नहीं मिलता है, मगर ग़ैर-रियायत वाली वित्तीय मदद भी सामर्थ्य से बाहर है. जबकि उनके सीमित घरेलू संसाधनों का परिणाम ये होता है कि अक्सर शिक्षा और कौशल विकास में कम संसाधन निवेश होता है.
नवाचारी वित्त सहायता की शानदार मिसाल
IFFEds को धन सहायता देने वालों में कैनेडा, स्वीडन और ब्रिटेन प्रमुख हैं, जिन्होंने 34 करोड़ 20 लाख डॉलर की रक़म गारंटियों में और पूंजी में देने का वादा किया है, जबकि 10 करोड़ डॉलर अनुदान के रूप में.
दुनिया भर के अनेक ग़ैर-सरकारी संगठनों ने भी इस रक़म में विशाल योगदान किया है.
इस बीच एशिया प्रशान्त क्षेत्र में 10 देशों को IFFEd की वित्तीय मदद के लिए स्वीकृत किया गया है, जिनके नाम हैं- बांग्लादेश, भारत, मंगोलिया, पाकिस्तान, पपुआ न्यू गिनी, फ़िलीपीन्स, श्रीलंका, तिमोर लेस्ते, उज़बेकिस्तान, और वियतनाम.