कोरोना महामारी के बाद से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों पर भी मंदी का साया मंडरा रहा है। अब यूरोप का इंजन कही जाने वाली जर्मनी में भी आर्थिक संकट का विकराल रूप दिखाई दे रहा है।
मंदी के खतरे को देखते हुए दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने अपने खर्च कम करने पर पूरा जोर देना शुरू कर दिया है। बता दें कि गुरुवार को यूरो तेजी से गिर गया। वहीं अमेरिकी डॉलर दो महीने के शिखर पर पहुंचा।
साथ ही अमेरिका के डिफॉल्ट होने का भी खतरा प्रबल हो गया है जिसके कारण दूसरे देश भी डरे हुए हैं।
बता दें कि जनवरी से मार्च तक यानी पहली तिमाही में जर्मनी की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 0.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। संघीय सांख्यिकी कार्यालय (federal statistics office) ने गुरुवाक को आंकड़ा जारी किया।
वहीं, साल 2022 की चौथी तिमाही में यानी अक्टूबर से दिसंबर के बीच जर्मनी की GDP 0.5 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी।
ऐसे में जर्मनी की दोनों साल की तिमाही के नतीजों में गिरावट दर्ज होने से देश में आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ता दिख रहा है।
वहीं, रेटिंग एजेंसी फिच ने भी अमेरिका को लेकर चेतावनी दी है । फिच के मुताबिक, अगर अमेरिकी सांसद कर्ज सीमा को नहीं बढ़ाते तो उसे अमेरिका की रेटिंग घटानी होगा।
बता दें कि अमेरिका में ऋण सीमा बढ़ाने के लिए सरकार और विपक्ष में सहमत नहीं हो पा रही है।
अमेरिका के डिफॉल्ट होने के खतरे से अब दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन और जापान भी काफी टेंशन में हैं।
बता दें कि चीन और जापान दोनों ही देश मिलकर अमेरिकी कर्ज का 2 ट्रिलियन डॉलर का हिस्सा रखते हैं।
साल 2000 में चीन ने अमेरिका के सरकारी कर्ज में इन्वेस्ट करना शुरू किया था। अमेरिका ने भी चीन के विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने का समर्थन किया था, जिसके बाद एक्सपोर्ट में भी तेजी देखने को मिली थी। साथ ही चीन को भी बड़े पैमाने पर डॉलर मिले थे।
एक समय में तो चीन का अमेरिकी ट्रेजरी बांड में निवेश 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था।
रिपोर्ट अनुसार, चीन एक दशक तक अमेरिका के लिए सबसे बड़ा विदेशी कर्जदाता देश था। हालांकि, ट्रंप शासन के दौरान दोनों देशों के बीच तनाव बड़ गया। जिसके बाद जापान ने चीन की जगह ले ली।
अब आर्थिक मंदी के संकट के बीच ये दोनों देश (चीन और जापान) अमेरिका का डिफॉल्ट होने के खतरे से घबराए हुए हैं।
हालांकि, इस विश्वभर में इस चौतरफा आर्थिक संकट के बीच भारत दुनिया के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरा है। फिलहाल, भारत में मंदी के आने का खतरा शून्य माना जा रहा है। वहीं, चीन के मंदी में जाने का खतरा 12.5 फीसदी तक है।

