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चार सप्ताह में पहली बार, OCHA टीम पहुँची उत्तरी ग़ाज़ा

चार सप्ताह में पहली बार, OCHA टीम पहुँची उत्तरी ग़ाज़ा

पिछले 11 महीनों से अधिक समय से युद्ध और विस्थापन के दंश से जूझ रहे ग़ाज़ा में, मानवीय सहायता मामलों में समन्वय के लिए यूएन कार्यालय, विभिन्न एजेंसियों के साथ समन्वय में मानवीय सहायता प्रयासों की अगुवाई कर रहा है.

OCHA कार्यालय ने सचेत किया है कि, मानवीय सहायताकर्मियों के लिए उत्तरी ग़ाज़ा तक पहुँचने के बेहद सीमित विकल्प हैं.

जब मानवतावादी मिशन को युद्ध से पीड़ित इलाक़ो में आवाजाही की अनुमति नहीं दी जाती है, तो इससे आम फ़लस्तीनी आबादी के लिए भोजन, जल, शरण, स्वास्थ्य व अन्य सेवाओं व सामग्री की क़िल्लत हो जाती है, जोकि उनकी गुज़र-बसर के लिए अति-आवश्यक है.

बताया गया है कि ग़ाज़ा में फ़लस्तीनियों को और अधिक मात्रा में साबुन समेत अन्य बुनियादी वस्तुओं की आवश्यकता है, जिसे वहाँ पहुँचाया जाना होगा.

फ़लस्तीनी शरणार्थियों की सहायता के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) ने सोमवार को एक ऐलर्ट जारी करके चिन्ता जताई थी कि ग़ाज़ा में पिछले 11 महीने से जारी युद्ध में विस्थापित लोगों के लिए बनाए गए अस्थाई शरण स्थलों में, कीड़ों और चूहों की भरमार है.

इन हालात में, स्वच्छता बरतने के लिए बुनियाद सामग्री का अभाव होने की वजह से आम लोगों के लिए संक्रामक रोगों की चपेट में आने का ख़तरा है.

मगर सहायता पहुँचाने के लिए मिशन को ज़रूरतमन्द आबादी तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

7 अक्टूबर को दक्षिणी इसराइल में हमास व अन्य चरमपंथी गुटों के आतंकी हमलों के बाद इसराइली सैन्य बलों ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू की है, जिससे विशाल स्तर पर लोग विस्थापन का शिकार हुए हैं और मानवीय सहायता ज़रूरतें उपजी हैं. 

सहायता मिशन के समक्ष चुनौतियाँ

यूएन कार्यालय ने बताया कि उनकी टीम को उत्तरी ग़ाज़ा तक पहुँचने से पहले, पाँच घंटों से अधिक समय तक तटीय इलाक़े में सड़क मार्ग पर स्थित एक इसराइली चौकी पर प्रतीक्षा करनी पड़ी.

सितम्बर महीने के पहले दो हफ़्तों में, संयुक्त राष्ट्र की सात एजेंसियों ने क़रीब 50 से अधिक मिशन की अगुवाई की, जिन्हें इसराइली प्रशासन के साथ समन्वय में शुरू किया गया था.

इसके बावजूद, इनमें से क़रीब एक-चौथाई ही वादी ग़ाज़ा में इसराइली सीमा चौकी से गुज़र करके उत्तरी इलाक़े तक पहुँच पाए. वहीं, जिन मिशन को सीमा चौकी के पार जाने की अनुमति मिल पाई, उनके रास्ते में भी अक्सर अवरोधों का सामना करना पड़ा.

बताया गया है कि कुछ सहायता क़ाफ़िलों को बन्दूक की नोक पर रोक लिया गया, गोलियाँ चलाई गई या फिर युद्धक्षेत्र में घंटों तक रोक करके रखा गया.

यूएन एजेंसी ने कठोर शब्दों में कहा कि ऐसी घटनाओं से कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए ख़तरे उपजते हैं और मिशन के लिए कार्य पूरा कर पाना कठिन हो जाता है, जोकि पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है.

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