अपने स्वाद, अपनी महक की विविधता के लिए विख्यात चाय, विश्व के सबसे पुराने और पानी के बाद सबसे अधिक पिए जाने वाले पेय पदार्थों में है.
माना जाता है कि चाय की शुरुआत भारत के पूर्वोत्तर इलाक़ों, म्याँमार के उत्तरी क्षेत्र और चीन के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में हुई, लेकिन यह पुष्टि कर पाना मुश्किल है कि इसका पौधा पहली बार कहाँ उगाया गया था.
मगर इतना तो स्पष्ट है कि चाय, लम्बे समय से हमारे जीवन का हिस्सा रही है. इस बात के साक्ष्य मौजूद है कि सम्भवत: पाँच हज़ार वर्ष पहले चीन में पहली बार चाय का सेवन किया गया था.
चाय ने हज़ारों साल के अपने लम्बे सफ़र में, आम जीवन, स्वास्थ्य, संस्कृति, विरासत और सामाजिक-आर्थिक विकास में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है.
चाय को ‘कैमेलिया सिनेसिस’ (camellia sinesis) नामक पौधे से तैयार किया जाता है, मगर यह केवल पानी और पत्तियों के मिश्रण से कहीं बढ़कर है.
चाय बाग़ानों से विश्व भर में क़रीब सवा करोड़ लोगों को वित्तीय सहारा मिलता है, जिनमें लघु किसान, उनके घर-परिवार भी हैं, जो अपनी आजीविका के लिए चाय सैक्टर पर निर्भर हैं.
चाय बेहद अहम नक़दी फ़सलों में है. मिस्र से लेकर चीन तक, और भारत से लेकर श्रीलंका व वियतनाम तक, चाय उत्पादन व प्रसंस्करण (processing) लाखों परिवारों के लिए जीवन-व्यापन का एक मुख्य स्रोत है.
चाय के निर्यात से मिलने वाले राजस्व से खाद्य आयात के लिए वित्तीय संसाधन जुटाए जाते हैं और चाय के बड़े निर्यातक देशों की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है.
अन्तरराष्ट्रीय दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 दिसम्बर 2019 को 21 मई को ‘अन्तरराष्ट्रीय चाय दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी, ताकि ग्रामीण विकास और सतत आजीविका में चाय की अहमियत को रेखांकित किया जा सके.
इस वर्ष की थीम चाय सैक्टर में महिलाओं की भूमिका पर केन्द्रित है.
यह दिवस चाय के सतत उत्पादन, उपभोग और व्यापार को भी प्रोत्साहन देने और यह सुनिश्चित करने का अवसर है कि अत्यधिक निर्धनता को दूर करने, भूख से लड़ने और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा में चाय सैक्टर को साथ लेकर चला जाए.
चाय को चाहने वालों, अपनी आजीविका के लिए उस पर निर्भर समुदायों और पर्यावरणीय लाभ सुनिश्चित करने के लिए यह ज़रूरी है कि चाय की सप्लाई चेन के हर चरण में, चाय बाग़ान से प्याले तक, उसे टिकाऊ बनाया जाए.
चाय व टिकाऊ विकास
चाय उत्पादन और प्रसंस्करण कार्य अनेक टिकाऊ विकास लक्ष्यों में योगदान करता है – इनमें पहला लक्ष्य भी शामिल है जिसमें अत्यधिक निर्धनता के उन्मूलन की बात कही गई है.
साथ ही भुखमरी के ख़िलाफ़ लड़ाई (एसडीजी 2), महिला मज़बूती (एसडीजी 5) और पारिस्थितिकी तन्त्रों का टिकाऊ इस्तेमाल (लक्ष्य 15) में भी इसका योगदान है.
चाय उत्पादन मौसमी परिस्थितियों के प्रति बेहद संवेदनशील है और इसे केवल चुनिन्दा कृषि-पारिस्थितिकी तंत्रों में, कुछ ही देशों ही उगाया जा सकता है.
इनमें से कई देश जलवायु परिवर्तन से उपजने वाले प्रभावों की चपेट में आ सकते हैं.
तापमान और वर्षा रुझानों में बदलाव, बाढ़ व सूखे के कारण चाय उत्पादन, गुणवत्ता और क़ीमतों पर असर पड़ सकता है. इससे चाय से होने वाली आय व ग्रामीण आजीविकाओं पर असर पड़ने की आशंका है.
इसके मद्देनज़र, यूएन विशेषज्ञों के अनुसार, चाय-उत्पादन करने वाले देशों के लिए यह अहम है कि राष्ट्रीय चाय विकास रणनीतियों में जलवायु चुनौतियों का भी ध्यान रखा जाए.