7 अक्टूबर को हमास के हमले में लगभग 1,200 लोगों की मौत हुई थी और क़रीब 240 लोगों को बन्धक बनाया गया था.
उसके बाद फ़लस्तीनी इलाक़ों में इसराइली बमबारी व ज़मीनी हमलों में, लगभग 13 हज़ार लोगों की मौत होने की ख़बरें हैं.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी – WHO के प्रवक्ता क्रिश्चियन लिंडमियर ने कहा है, “हर दिन लगभग 160 बच्चों की मौतें होती हैं; जोकि हर 10 मिनट में एक मौत के बराबर हैं.”
प्रवक्ता ने, यूनीसेफ़ की इन चिन्ताओं को भी दोहराया कि ग़ाज़ा पट्टी में व्यापक स्तर पर बीमारी फैलने का भी अतिरिक्त गम्भीर जोखिम है.
यूएन बाल एजेंसी – UNICEF के प्रवक्ता जेम्स ऐल्डर ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया, “अगर ग़ाज़ा में, बच्चों को पानी और स्वच्छता की प्रतिबन्धित व सीमित उपलब्धता जारी रहेगी, तो हम बच्चों की मौतों की संख्या में एक त्रासद मगर ऐसा उछाल देखेंगे, जिसे पूर्ण रूप से टाला जा सकता है.”
प्रवक्ता ने बताया कि ग़ाज़ा के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, पहले ही, 5 हज़ार 350 फ़लस्तीनी बच्चे मारे जा चुके हैं.
प्रवक्ता जेम्स ऐल्डर ने कहा, “बच्चों की ये मृत्यु संख्या हृदय विदारक है. शोक और पीड़ा, अब ग़ाज़ा में अटूट हिस्सा बन रही है. इसलिए ये कड़ी चेतावनी है: पर्याप्त ईंधन के बिना, पर्याप्त जल के बिना, बच्चों के लिए हालात, और भी बदतर होंगे.”
यूनीसेफ़ प्रवक्ता ने कहा कि कम से कम 30 इसराइली बच्चों को अब भी, “नरक जैसे इस परिदृश्य में कहीं” बन्धक बनाकर रखा गया है.
उन्होंने बन्धकों की तत्कार रिहाई की अपील करते हुए, उन्हें उनके भय और उनके परिवारों को अत्यन्त गम्भीर पीड़ा से बख़्श देने की भी अपील की है.

पानी, ईंधन और भोजन लगभग पूरी तरह ख़त्म
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, ग़ाज़ा अब हज़ारों घायलों और गम्भीर रूप से बीमार लोगों का घर बन चुका है.
एजेंसी का कहना है कि डायरिया और साँस संक्रमण जैसी बीमारियों में त्वरित वृद्धि देखी गई है, और पानी, ईंधन, भोजन, बिजली या चिकित्सा सामग्री के लगभग पूरी तरह ख़त्म होने की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
विस्थापित लोगों के लिए बनाए गए आश्रय स्थलों में साँस सम्बन्धी संक्रमण के लगभग 72 हज़ार मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से क़रीब 49 हज़ार मामले डायरिया के हैं. और इनमें से भी आधे मामले, पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के हैं.
