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ग़ाज़ा: ‘युद्धविराम के बिना बीता हर एक दिन, अपने साथ लाएगा और त्रासदी’

ग़ाज़ा: ‘युद्धविराम के बिना बीता हर एक दिन, अपने साथ लाएगा और त्रासदी’

उन्होंने गुरूवार को सोशल मीडिया पर अपने सन्देश में कहा कि अक्टूबर 2023 में युद्ध की शुरुआत के बाद से अब तक, ग़ाज़ा में कोई भी स्थान और कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं है. 

“नए वर्ष की शुरुआत के साथ ही, हमें अल मवासी में एक और हमले की रिपोर्ट मिली है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है और वे घायल हुए हैं.”

महाआयुक्त लज़ारिनी के अनुसार, ये घटना हमें फिर से ध्यान दिलाती है कि ग़ाज़ा में कोई भी मानवतावादी ज़ोन नहीं है, सुरक्षित ज़ोन की तो बात ही नहीं की जा सकती.

उन्होंने आगाह किया कि युद्धविराम के बिना बीता हर एक दिन अपने साथ और त्रासदी लेकर आएगा.

मीडिया पर प्रहार

यूएन एजेंसी ने ध्यान दिलाया कि इसराइली प्रशासन ने ग़ाज़ा पट्टी के भीतर, अन्तरराष्ट्रीय मीडिया के काम करने और वहाँ से जानकारी मुहैया कराए जाने पर पाबन्दी लगाई हुई है.

इसके मद्देनज़र, UNRWA ने ज़ोर देकर कहा है कि ग़ाज़ा में अन्तरराष्ट्रीय पत्रकारों को जाने और वहाँ की स्थिति स्वतंत्रापूर्वक बयाँ करने की अनुमति दी जानी होगी.

उधर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने गहरी चिन्ता जताई है कि फ़लस्तीनी प्राधिकरण ने क़ाबिज़ पश्चिमी तट में अल जज़ीरा न्यूज़ नैटवर्क के कार्यालय को बन्द करते हुए इस चैनल के संचालन पर रोक लगा दी है.

क़तर स्थित इस चैनल पर भड़काऊ सामग्री के प्रसारण का आरोप लगाया गया है, जोकि “छलावापूर्ण, बहकावे और आपसी टकराव को हवा” देने वाली थी. अन्तरराष्ट्रीय समाचार माध्यमों ने फ़लस्तीनी न्यूज़ एजेंसी वफ़ा के हवाले से यह बात कही है.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, क़ाबिज़ पश्चिमी तट में अभिव्यक्ति और विचार की आज़ादी को दबाने का रुझान चिन्ताजनक है. इस क्रम में, फ़लस्तीनी प्राधिकरण से अपना रास्ता बदलने और अन्तरराष्ट्रीय दायित्वों का सम्मान करने का आग्रह किया गया है.

स्वास्थ्य व्यवस्था पर जोखिम

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ग़ाज़ा में स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार के प्रति पूर्ण रूप से बेपरवाही बरते जाने की निन्दा करते हुए इन तौर-तरीक़ों पर विराम लगाने की मांग की है.

पिछले सप्ताह, उत्तरी ग़ाज़ा के कमाल अदवान अस्पताल में इसराइली सैन्य बलों की कार्रवाई के बाद वहाँ देखभाल सेवाएँ ठप हो गई थी और अस्पताल के निदेशक डॉक्टर हुस्सम अबू साफ़िया को हिरासत में ले लिया गया था.

शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए विशेष रैपोर्टेयर डॉक्टर त्लालेंग मोफ़ोकेंग और क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर फ़्राँसेस्का ऐल्बानीज़े ने गुरूवार को जारी अपने एक वक्तव्य में इन घटनाओं पर क्षोभ जताया है.

उन्होंने कहा कि ये कार्रवाई, इसराइल द्वारा अपनाए गए उन्हीं तौर-तरीक़ों का हिस्सा है, जिसके तहत लगातार बमबारी की जा रही है, और ग़ाज़ा में स्वास्थ्य के अधिकार को पूर्ण रूप से तबाह किया जा रहा है.

ग़ाज़ा के कुछ इलाक़े में, यूएन एजेंसियाँ भोजन की ताज़ा ख़ुराकें वितरित कर पा रही हैं. मगर ग़ाज़ा एक क़ब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है, जहाँ से बचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता है.

ग़ाज़ा के कुछ इलाक़े में, यूएन एजेंसियाँ भोजन की ताज़ा ख़ुराकें वितरित कर पा रही हैं. मगर ग़ाज़ा एक क़ब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है, जहाँ से बचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता है.

स्वास्थ्यकर्मी निशाना नहीं

उन्होंने कहा कि अस्पताल के निदेशक डॉक्टर अबू साफ़िया को अगवा किए जाने से पहले उनके बेटे को उन्हीं के सामने जान से मार दिया गया था.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि ऐसे आरोप भी हैं कि इसराइली सेना ने अस्पताल के नज़दीक स्थित इलाक़े में कुछ लोगों की न्यायेतर हत्याएँ की, जिनमें सफ़ेद झंडा हाथ में लेकर चलने वाला एक फ़लस्तीनी भी था.

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने बताया है कि अब तक ग़ाज़ा युद्ध में एक हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी स्वास्थ्यकर्मी व मेडिकल कर्मचारी अब तक मारे जा चुके हैं. बड़ी संख्या में उन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मेडिकल कर्मचारियों को अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून के तहत विशेष संरक्षण प्राप्त है और उन्हें निशाना बनाए जाने को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है. ना ही उन्हें अपने चिकित्सा दायित्व को निभाते समय हिरासत में लिया जा सकता है.

विशेष रैपोर्टेयर ने स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर हमलों को तुरन्त रोकने और डॉक्टर अबू साफ़िया की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि एक क़ाबिज़ शक्ति के तौर पर इसराइल को ग़ाज़ा में जीवन और स्वास्थ्य सेवा पाने के अधिकार का सम्मान करना होगा.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ या विशेष रैपोर्टेयर, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद द्वारा, किसी मानवाधिकार स्थिति या किसी देश की स्थिति की निगरानी करके, रिपोर्ट सौंपने के लिए नियुक्त किए जाते हैं.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र और किसी देश की सरकारों से स्वतंत्र होते हैं, वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उनके काम के लिए, उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.

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