संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने ग़ाज़ा में स्कूलों पर इसराइली सेनाओं के बढ़ते हमलों के चलन पर भीषण चिन्ता व्यक्त की है.
पिछले एक महीने के दौरान, इन हमलों में, ग़ाज़ा के भीतर ही विस्थापित लोगों में से कम से कम 163 लोग मारे गए हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएँ भी हैं.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, बीते एक महीने के दौरान 17 स्कूलों पर हमले गिए गए हैं जिससे इसराइल द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन किए जाने के बारे गम्भीर चिन्ताएँ उपजी हैं.
इनमें नागरिक और युद्धक ठिकानों में भेद करना, अनुपात के अनुसार बल प्रयोग करना और ऐहतियात बरतने जैसे प्रावधान शामिल हैं.
OHCHR ने इस तरह के हमलों में तेज़ी की तरफ़ भी ध्यान खींचा है. गत सोमवार के बाद से, कम से कम सात स्कूलों को निशाना बनाया गया है.
इन सभी स्कूलों को, आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों (IDPs) के लिए आश्रय स्थल बनाया हुआ था. इनमें से एक स्कूल को मैदानी अस्पताल भी बनाया गया था.
इसराइल की ज़िम्मेदारियाँ
इसराइली सेना ने दावा किया है कि पाँच स्कूलों को, हमास से सम्बन्धित लोग अपनी गतिविधियों के लिए प्रयोग कर रहे थे.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने ज़ोर देकर कहा है कि इसराइल का यह दावा सही है तो सशस्त्र गुटों द्वारा आम लोगों को सुरक्षा कवच यानी शील्ड की तरह इस्तेमाल किया जाना भी, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का एक बड़ा उल्लंघन है.
“मगर, इस स्थिति से भी, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सख़्ती से पालन करने की, इसराइल की ज़िम्मेदारी कम नहीं हो जाती है…”
मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि फ़लस्तीनी क्षेत्र पर एक क़ाबिज़ शक्ति के रूप में, इसराइल की यह ज़िम्मेदारी है कि वो विस्थापित आबादी की बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करे.
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