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ग़ाज़ा में लोग ‘पशु चारे’ पर जीवित, अकाल की पीड़ाजनक दस्तक

तीन बच्चों के पिता अब्दुल मजीद सलमान अपने परिवार को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यद्यपि वह काम ढूंढने या आय अर्जित करने में असमर्थ हैं, फिर भी वह किसी भी प्रकार का भोजन घर लाने के लिए अपनी शक्ति में सब कुछ करते हैं, भले ही वो चीज़ें मानव उपभोग के लिए नहीं हों.

यूएन न्यूज़ ने, ग़ाज़ा पट्टी के उत्तरी इलाक़े में जबालिया शरणार्थी शिविर की तबाह सड़कों पर, अब्दुल मजीद के साथ कुछ समय बिताया. वहाँ अब्दुल मजीद ने बताया कि यहाँ के अधिकांश निवासियों की तरह, उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए मक्का और जौ चारा ख़रीदा, जो वस्तुतः पशु चारा है. ताकि उनके परिवार को कुछ पोषण मिल सके क्योंकि भोजन तो नहीं मिल रहा है और पहुँच से बाहर हो गया है.

एक निन्दनीय स्थिति

अब्दुल मजीद का कहना है कि एक पाउंड आटे की क़ीमत बढ़कर 100 से 110 शेकेल (इसराइली मुद्रा) हो गई, जबकि मौजूदा युद्ध से पहले एक “मोर्टार बैग” की क़ीमत 30 से 40 शेकेल के बीच थी.

“आप बच्चों को यह नहीं बता सकते कि रोटी उपलब्ध नहीं है. वे सुबह उठते हैं और भोजन की मांग करते हैं. जहाँ तक वयस्कों की बात है, वे स्थिति से निपट सकते हैं और आधी रोटी पर भी गुज़र कर सकते हैं.”

ग़ाज़ा के अल जबालिया शरणार्थी शिविर में, अब्दुल मजीद की पत्नी, पशु चारे से आटा बनाकर, उसकी रोटी बनाते हुए.

अब्दुल मजीद सलमान ने कहा कि उनके परिवार को एक ख़ुराक भोजन के लिए लगभग 80 शेकेल यानि लगभग 22 अमरीकी डालर के बराबर की रक़म की आवश्यकता होती है – वो भी तब जब ये खाद्य सामग्री बाज़ार में उपलब्ध हो. यह मात्रा, “बच्चों का पेट भरने के लिए मुश्किल से पर्याप्त होती है.”

यूएन न्यूज़ ने जबालिया शरणार्थी शिविर में, युद्ध में तबाह हुए घरों व इमारतों के मलबे और खंडहरों के बीच, अब्दुल मजीद के घर का दौरा किया, जो कभी एक जीवन्त बस्ती थी. 

हमने उनकी पत्नी को मक्का के चारे से बनाए गए आटे और उसमें मुट्ठी भर सफ़ेद आटा मिलाकर रोटी बनाते हुए देखा. इस रोटी को कैसे तैयार किया जाए, यह समझाते हुए उसने कहा: “ईश्वर के अलावा कोई अन्य शक्ति या ताक़त नहीं है. यदि हम जद्देजहद नहीं करते तो, हम यहाँ तक पहुँच ही नहीं पाते. आटा अगर बाज़ार मिल भी जाए तो बहुत महंगा है.”

अब्दुल मजीद का कहना है कि वह अपना दिन, खाना पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने में बिताते हैं क्योंकि उत्तरी ग़ाज़ा में खाना पकाने के लिए गैस उपलब्ध नहीं है. 

उन्होंने कहा कि वह उन इमारतों के अवशेषों में किसी लकड़ी की तलाश करते हैं जिन्हें इसराइली बलों ने बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया है.

‘यहाँ कोई विकल्प नहीं है’

जबालिया शिविर में अब्दुल मजीद जैसे निवासियों और समग्र रूप से उत्तरी ग़ाज़ा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, मोहम्मद ख़ालिदी ने एक अनाज पीसने वाली परियोजना शुरू की.

“यह जगह कपड़े सिलने की फ़ैक्टरी थी. लेकिन लोगों को अनाज पीसने की ज़रूरत के कारण, दुर्भाग्य से, इस स्थिति में, हमें लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए, यह स्थिति बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा, और हमने उस जगह को एक चक्की में तब्दील कर दिया”.

मोहम्मद ख़ालिदी और उनके कामगारों ने वहाँ की जगह को साफ़ किया और अनाज पीसने की मशीन स्थापित की. उन्होंने बताया कि मगर, गेहूँ की कमी के कारण, शिविर के निवासियों ने “जीवित रहने, खाने और पकाने के लिए, ऐसी चीज़ें लाना शुरू कर दिया जो पशु और पक्षियों को भोजन के विभिन्न रूप हैं, क्योंकि उत्तरी ग़ाज़ा तक किसी भी तरह की सहायता नहीं पहुँच पा रही थी.”

ग़ाज़ा के अल जबालिया शरणार्थी शिविर में, मोहम्मद ख़ालिदी की आटा चक्की में, लोग पशुचारा पीसने के लिए लाए, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प ही नहीं था.

अन्य निवासियों की तरह, अब्दुल मजीद भी, ऐसा गेहूं, जौ और मक्का, मोहम्मद ख़ालिदी की चक्की में लाते हैं जो इनसानों के भोजन योग्य नहीं हैं, क्योंकि अन्य कोई विकल्प ही नहीं है.”

उनका कहना है, “क़ीमतें आसमान छू रही हैं, और हमने रक़म उधार लेनी शुरू कर दी है. हम एक भोजन ख़ुराक दो या तीन दिनों तक चलाते हैं, ताकि धन की कुछ बचत हो सके, और बच्चों का भी पेट भर सके.”

‘अकाल के मुहाने पर’

मोहम्मद ख़ालिदी ने ज़ोर देकर कहा कि उत्तरी ग़ाज़ा के निवासी “अकाल के कगार पर” हैं और उन्होंने दुनिया से, इस स्थिति से बचने के लिए गेहूँ, आटा और अन्य सहायता सामान पहुँचाने की अपील की है. लेकिन इस भूख बीच, “संकट पर संकट की स्थिति” है,जैसा कि मोहम्मद ख़ालिदी कहते हैं वो है ईंधन संकट. वह जो आटा चक्की चलाते हैं, वह डीज़ल पर चलती है, जो – यदि उपलब्ध हो – तो बहुत महंगा है.

“अगर यह काले बाज़ार में पाया जाता है, तो बीस-लीटर का एक टिन 600 शेकेल में मिलता है, जो एक लीटर लगभग 30 शेकेल के बराबर है. जबकि इसकी अन्तरराष्ट्रीय क़ीमत एक डॉलर से भी कम है, लेकिन ग़ाज़ा में एक लीटर डीज़ल की क़ीमत दस डॉलर से भी ज़्यादा है.” 

“हम डीज़ल पर काम करते हैं और अगर डीज़ल व आटा नहीं लाया गया तो आटा चक्कियाँ काम करना बन्द कर देंगी और लोगों के खाने के लिए और उनकी भूख मिटाने के लिए रत्ती भर भी आटा नहीं बचेगा. वयस्कों के रूप में, हम इस अकाल के बारे में जानते हैं, लेकिन बच्चे नहीं. बच्चे भूख से मर रहे हैं, वे भूख से छटपटा रहे हैं, और हमें ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है जिसके बारे में केवल ईश्वर ही जानता है.”

UNRWA की धन क़िल्लत

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNRWA का कहना है कि 7 अक्टूबर को युद्ध शुरू होने के बाद से ग़ाज़ा पट्टी के उत्तरी हिस्से तक उसकी पहुँच बहुत सीमित हो गई है. उत्तरी इलाक़े में सहायता पहुँचाने के परमिट को अक्सर इसराइल द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, और संयुक्त राष्ट्र के कई क़ाफ़िले आग की चपेट में आ गए हैं. हाल ही में दो दिन पहले यूएनआरडब्ल्यूए के एक क़ाफ़िले पर इसराइली नौसेना ने उस समय गोलाबारी की थी, जब वह क़ाफ़िला उत्तर की ओर जाने का इन्तजार कर रहा था.

ग़ाज़ा पट्टी जिस मानवीय आपदा का सामना कर रही है, उसके बीच यह आशंका बढ़ रही है कि यूएनआरडब्ल्यूए जोकि ग़ाज़ा में प्रमुख मानवीय सहायता एजेंसी है, जल्द ही अपनी सेवाएँ बन्द करने के लिए मजबूर हो सकती है. 

ग़ाज़ा के अल जबालिया शरणार्थी शिविर में, मोहम्मद ख़ालिदी ने, एक पुरानी फ़ैक्टरी को साफ़ करके, वहाँ आटा चक्की स्थापित की है, जहाँ लोग पशुचारा पिसवाने के लिए लाते हैं.

हाल ही में, इस एजेंसी के 12 कर्मचारियों पर, हमास द्वारा 7 अक्टूबर को इसराइल में किए गए हमलों में शामिल होने के इसराइली आरोपों के बाद, अनेक दाता देशों ने, इस एजेंसी को अपनी वित्तीय सहायता निलम्बित करने की घोषणा कर दी थी.

अगर यूएनआरडब्ल्यूए के वित्त संकट का कोई समाधान नहीं हो जाता, तो ऐसा अनुमान है कि मौजूदा आवश्यक संचालन धनराशि, फ़रवरी के अन्त तक समाप्त हो जाएगी. इससे न केवल ग़ाज़ा में, बल्कि पूर्वी येरूशेलम, पश्चिमी तट, जॉर्डन, सीरिया और लेबनान में भी यूएनआरडब्ल्यूए के संचालन पर असर पड़ेगा.

यूएनआरडब्ल्यूए क्षेत्र में 59 लाख फ़लस्तीनी शरणार्थियों को सहायता मुहैया कराती है.

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