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ग़ाज़ा: उपचार के लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल रही अनुमति, मौतों पर क्षोभ

ग़ाज़ा: उपचार के लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल रही अनुमति, मौतों पर क्षोभ

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को कहा कि ग़ाज़ा युद्ध का सबसे स्याह अध्याय, उत्तरी इलाक़े में हो रहा है, जहाँ की पूरी आबादी इसराइली सेना की बमबारी, घेराबन्दी की चपेट में है और भूख का शिकार है.

उत्तरी ग़ाज़ा में लोगों को सामूहिक विस्थापन और हिंसक टकराव से ग्रस्त एक इलाक़े में फँसे होने में से एक विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

“उत्तरी ग़ाज़ा में बिना रुके बमबारी हो रही है. इसराइली सेना ने लाखों लोगों को वहाँ से जाने का आदेश दिया है, और उनके पास वापसी की कोई गारंटी नहीं है. मगर सुरक्षित बाहर निकलने के लिए कोई सुरक्षित रास्ता नहीं है.”

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के प्रमुख ने देशों को ध्यान दिलाया है कि जिनीवा सन्धि के तहत उनका यह दायित्व है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून का सम्मान किया जाए.

“अकल्पनीय रूप से, हालात दिन बीतने के साथ बद से बदतर हो रहे हैं.”

वोल्कर टर्क ने क्षोभ जताया कि इसराइली सरकार की नीतियों और तौर-तरीक़ों से उत्तरी ग़ाज़ा के सभी फ़लस्तीनियों से खाली हो जाने का जोखिम है. “हम जिसका सामना कर रहे हैं, उससे अत्याचार अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है, जोकि मानवता के विरुद्ध अपराध भी हो सकता है.”

लालफीताशाही की मार

ग़ाज़ा में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से युद्ध जारी है. गम्भीर रूप से घायल बच्चों को बेहतर इलाज के लिए ग़ाज़ा से बाहर ले जाने की आवश्यकता है, मगर यह फ़िलहाल लालफीताशाही में उलझा हुआ मामला है, जिससे बच्चों की पीड़ा बढ़ती जा रही है.

मौजूदा दर प्रति दिन एक बच्चे से भी कम है, जबकि अनेक बच्चों को अपने ज़ख़्मों, जले होने, अपंगता, कुपोषण व कैंसर समेत अन्य बीमारियों के लिए तत्काल स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के प्रवक्ता जेम्स ऐल्डर ने जिनीवा में शुक्रवार को पत्रकारों को बताया कि यह अभियान संचालन सम्बन्धी समस्या नहीं है. उनके पास इन बच्चों को ग़ाज़ा से बाहर ले जाना, हमारी क्षमता की समस्या नहीं है.

कुछ महीने पहले तक, हम अधिक संख्या में ग़ाज़ा से बच्चों को बाहर इलाज के लिए ले जा पा रहे थे. यह एक ऐसी समस्या है जिसकी पूर्ण रूप से अनदेखी की जा रही है.

यूनीसेफ़ प्रवक्ता ने कहा कि जब किसी बच्चों को बेपरवाह लालफीताशाही की वजह से बेहतर उपचार के लिए नहीं भेजा जाता है, तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता. इन अनुरोधों को नकारने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया है.

उनके अनुसार यदि मौजूदा दर यूँ ही जारी रही तो चिकित्सा देखभाल की प्रतीक्षा कर रहे क़रीब ढाई हज़ार बच्चों को ग़ाज़ा से बाहर भेजने में सात वर्ष से अधिक समय लगेगा.

एक वर्ष से जारी युद्ध में एक लाख से अधिक फ़लस्तीनी घायल हुए हैं, जिनमें से अनेक अपंगता का शिकार हैं.

एक वर्ष से जारी युद्ध में एक लाख से अधिक फ़लस्तीनी घायल हुए हैं, जिनमें से अनेक अपंगता का शिकार हैं.

मानवाधिकारों का हनन

1 जनवरी से 7 मई के दौरान, हर महीने औसतन 296 बच्चों को चिकित्सा कारणों से ग़ाज़ा से बाहर भेजे जाने की ज़रूरत थी. मगर, 7 मई को इसराइली ज़मीनी अभियान शुरू होने के बाद, मिस्र व ग़ाज़ा की सीमा पर स्थित रफ़ाह सीमा चौकी को बन्द कर दिया गया, जिसके बाद बाहर ले जाए जाने वाले बच्चों की संख्या घटकर प्रति माह 127 रह गई है.

यूनीसेफ़ प्रवक्ता ने कहा कि बच्चों के लिए मेडिकल देखभाल को नकारा जा रहा है, जोकि एक बुनियादी मानवाधिकार है. जो लोग निर्मम ढंग से की गई बमबारी में किसी तरह बच गए हों, वे अपने ज़ख़्मों के कारण मरने के लिए अभिशप्त हैं.

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि ग़ाज़ा में जारी लड़ाई में फँसे विकलांगजन की आवश्यकताओं को नज़रअन्दाज़ किया जा रहा है.

एक अनुमान के अनुसार, एक लाख से अधिक घायल फ़लस्तीनियों में अनेक को लम्बे समय के लिए पुनर्वास, सहायक उपकरण, मनोसामाजिक समर्थन समेत अन्य सेवाओं की आवश्यकता है, मगर ये उन्हें नहीं मिल पा रही है.

विशेष रैपोर्टेयर ने क्षोभ जताया है कि विकलांग व्यक्तियों से किसी प्रकार को कोई सुरक्षा ख़तरा नहीं है, मगर फिर भी ताबड़तोड़ हमलों में वे हताहत हो रहे हैं.

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ किसी सरकार या संगठन के प्रतिनिधि नहीं हैं, और उन्हें कामकाज के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है.

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