यूएन जलवायु वार्ताकारों ने स्थानीय समय के अनुसार रविवार सुबह अपनी बातचीत को धनी देशों के इस संकल्प के साथ समाप्त किया कि वो विकासशील देशों को, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में हर साल कम से कम 300 अरब डॉलर की रक़म अदा करेंगे.
विकासशील देश इस मद के लिए कम से कम एक ट्रिलियन डॉलर (1000 अरब डॉलर) की मांग कर रहे थे और उन्होंने 300 अरब डॉलर के समझौते को उनके लिए एक अपमान क़रार दिया है.
विकासशील देशों का कहना है कि इस रक़म से उन्हें, जलवायु संकट का मुक़ाबला प्रभावशाली ढंग से करने के लिए ज़रूरी समर्थन हासिल नहीं होगा.
संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन में, एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित वैश्विक कार्बन बाज़ार के लिए भी नियमों पर सहमति हुई है.
यह कार्बन बाज़ार, कार्बन क्रैडिट के क्रय-विक्रय को आसान बनाएगा जिससे देशों को अपने यहाँ कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु – अनुकूल परियोजनाओं में संसाधन निवेश करने के लिए रियायत देगा.
‘कहीं अधिक महत्वाकांक्षी परिणाम’
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस समझौते की ख़बर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि 1.5 डिग्री का ऊपरी दायरा बनाए रखने के लिए कॉप29 में कोई समझौता बहुत ज़रूरी था.
“मुझे इससे कहीं अधिक महत्वाकांक्षी परिणाम की उम्मीद थी – वित्त और शमन- दोनों पर ही – हमारे सामने दरपेश विशाल चुनौतियों का सामना करने के लिए.”
मगर इस समझौते में एक ऐसा आधार मिलता है जिस आगे का निर्माण करना होगा: “इस पर पूरी तरह से और बिल्कुल समय पर अमल किया जाना होगा. संकल्पों को तेज़ी से नक़दी में तब्दील करना होगा. इस समझौते के ऊपरी लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी देशों को एकजुट होना होगा.”
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