वर्ष 2022 में एक सैन्य जाँच में पाया गया था कि ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान में, NATO के नेतृत्व वाली अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता सेना के तहत अपनी तैनाती के दौरान, 39 निहत्थे क़ैदियों कोर मार दिया था. उनमें से कुछ क़ैदियों को मारने से पहले प्रताड़ित भी किया गया था.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों और अन्तररा,ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत ऑस्ट्रेलिया की ये ज़िम्मेदारी है को वो उसके सैनिकों द्वारा इस तरह की हत्याओं का शिकार हुए लोगों के परिवारों को मुआवज़ा दे.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों द्वारा हत्याओं का शिकार हुए नज़र गुल, यारो मामा फ़ाक़िर और अली जान जैसे लोगों के परिवारों को, अफ़ग़ानिस्तान के ग्रामीण इलाक़ों में एक दशक से भी अधिक समय तक, बहुत ही गठिन हालात में जीने के लिए छोड़ दिया जाना, बिल्कुल बेतुका और अस्वीकार्य है. नज़र गुल पर तीन पत्नियों और 17 बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी थी.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने स्वीकार किया है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार, उन अफ़ग़ान लोगों की हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार सैनिकों के अपराध और उन्हें न्याय के कटघरे में पहुँचाने के लिए प्रयास कर रही है मगर वो बहुत धीमे हैं. हालाँ
कि सरकार ने पीड़ितों को मुआवज़ा दिए जाने का भी संकल्प व्यक्त किया है.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि सैन्य जाँच में स्थापित किया गया था कि पीड़ितों और उनके परिवारों के मुआवज़ा दिए जाने की ज़रूरत है. इसलिए यह अस्वीकार्य है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार ने इसके लिए सहमत होने के चार वर्ष बाद भी अभी तक कोई मुआवज़ा अदा नहीं किया है, और उनमें से कुछ लोगों की हत्याओं को तो 12 वर्ष का समय बीत चुका है.
ऑस्ट्रेलिया ने जुलाई 2024 में, आख़िरकार मुआवज़ा दिए जाने के लिए कोई क़ानून बनाया था. अलबत्ता ऑस्ट्रेलिया ने इस मुआवज़े को, सैना के विवेक पर छोड़ा गया एक दान स्थापित किया है, और इस मुआवज़े को, उन हत्याओं के शिकार हुए पीड़ितों और उनके परिवारों के एक क़ानूनी अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी है, जैसाकि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत प्रावधान है.
पीड़ितों के परिवारों की अनदेखी व असम्मान
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि यह योजना, पीड़ितों को मुआवज़ा दिए जाने के अधिकार को मान्यता देने में नाकाम है और मुआवज़े की रक़म और उसके आधार के बारे में कोई स्पष्ट व मानवाधिकारों से मेले खाने वाले प्रावधान नहीं बनाए गए हैं.
साथ ही इस मुआवज़े की क़ानूनी प्रक्रिया और संरक्षण अपर्याप्त हैं और पीड़ितों को इस बारे में जानकारी देने व उनके साथ परामर्श करने की ज़रूरत का भी कोई प्रावधान नहीं है.
मुआवज़े के अतिरिक्त अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में ये अनिवार्यता है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार, पीड़ितों के परिवारों को चिकित्सा व मनोवैज्ञानिक उपचार, क़ानूनी सहायता और शैक्षणिक व अन्य तरह की सहायता के साथ-साथ पुनर्वास के तरीक़े उपलब्ध कराए.
इनमें उन हत्याओं का शिकार हुए पीड़ितों के बच्चों, पत्नियों और उनके पारिवारिक सदस्यों को, अफ़ग़ान क़ानून के तहत पहचान मिले.
पूर्ण बहाली व पुनर्वास में सत्य को स्वीकार किया जाना, क्षमा याचना और पीड़ितों का सार्वजनिक सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया जाना भी शामिल होना चाहिए.
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि खेद है कि ऑस्ट्रेलिया ने उन हत्याओं का शिकार होने वाले पीड़ितों व उनके परिवारों से सीधे तौर पर अभी क्षमा याचना नहीं की है और ना ही जाँच, मुक़दमों और सैन्य सुधारों के बारे में जानकारी दी है. और ना ही उन परिवारों को ऑस्ट्रेलिया प्रक्रियाओं में शिरकत करने का मौक़ा दिया है.
उन्होंने कहा है कि इसके उलट ऑस्ट्रेलियाई युद्ध स्मारक संस्था ने, हत्याओं के लिए एक सिविल मामले में दोषी पाए गए एक व्यक्ति को, सार्वजनिक रूप से युद्ध हीरो के रूप में मान्यता दी है, और ऐसा करते हुए अफ़ग़ान पीड़ितों को नज़रअन्दाज़ और उनका असम्मान किया गया है.