ऑनलाइन फार्मेसी के नियमन पर जल्द ही निर्णय लिए जाने की संभावना है। एक संसदीय समिति ने स्वास्थ्य मंत्रालय को ई-फार्मेसी नियमों के मसौदे को अंतिम रूप देने और बगैर देर किए लागू करने के लिए कहा है। समिति ने नियमों के अभाव में दवाइयों की बिक्री और वितरण के संभावित दुरुपयोग पर भी चिंता जाहिर की है।
सूत्रों ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय जल्द ही इस मामले पर निर्णय ले सकता है।
इस बीच, ई-फार्मा कंपनियां भी जरूरी होने पर मंत्रालय और नियामक के साथ काम करने के लिए तैयार हैं। नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर उद्योग के एक जानकार ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अच्छा होगा यदि नियमों का मसौदा तैयार हो और उसमें स्पष्टता रहे। संसदीय रिपोर्ट भी जल्द से जल्द नियम तैयार करने के पक्ष में लग रही है।’
एक ऑनलाइन फार्मा कंपनी के सह संस्थापक ने कहा, ‘हमें मंत्रालय और नियामकों के साथ काम करने में खुशी मिलेगी।’
वाणिज्य विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निश्चित नियामक वाले ढांचे में बेवजह की देरी से अनिश्चितता बढ़ती है और यह तेज गति वाले डिजिटल बाजार के लिए भी सही नहीं है। अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय अपने हितधारकों के साथ विमर्श कर व्यापक दिशानिर्देश बनाए।
एक सरकारी सूत्र ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है और अन्य मंत्रालयों के साथ भी उसने चर्चा शुरू कर दी है। उसने बताया कि मुख्य रूप से चिंता डेटा गोपनीयता के नियमों को लेकर है।
नियमों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, फार्मास्यूटिकल्स विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में सहायक सचिवों के एक-एक समूह का गठन किया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘संबंधित विभागों के सहायक सचिवों के तीन समूहों द्वारा की गई सिफारिशों पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने विचार किया। उसने उनकी कुछ सिफारिशों पर सहमति भी जताई है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रस्ताव के ब्योरे पर विचार करने के लिए 20 सितंबर, 2019 को एक मंत्री समूह (जीओएम) का गठन किया था। समूह की सिफारिशें सरकार के विचाराधीन हैं।’
सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार डेटा की गोपनीयता को लेकर चिंतित है। मरीज किन दवाओं का उपयोग करते हैं और उन्होंने कौन-कौन से परीक्षण करवाए हैं आदि जानकारियां भी ऑनलाइन फार्मेसी में रहती हैं। आशंका जताई जा रही है ऑनलाइन फार्मा कंपनियों द्वारा एकत्रित किए गए डेटा का दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
इसके अलावा खुदरा दुकानदारों ने भी विरोध जताया है और कहा है कि ऑनलाइन फार्मा कंपनियां कम कीमत पर दवाइयां बेचकर ग्राहकों को आकर्षित करती हैं। यह छोटी दवा दुकानों के लिए हानिकारक है। अभी देश में 8 लाख से अधिक दवा दुकानें हैं।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, ‘केमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन जैसे हितधारकों ने ई-फार्मेसी नियमन का यह कहते हुए विरोध जताया है कि इससे करीब 8 लाख दवा दुकानदार व्यवसाय बाहर हो जाएंगे। वर्तमान में दवा दुकानदारों को ग्राहकों के घर पर दवाइयां पहुंचाने की अनुमति नहीं दी गई है, जबकि ऑनलाइन फार्मा कंपनियों के पास इसकी अनुमति है।’
दवा दुकानदारों ने इस बात पर जोर दिया कि ऑनलाइन कंपनियों को केवल ई-प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर दवाइयां बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि एक ही दवा को बार-बार नहीं बेचा जा सके। साथ ही दवा विक्रेताओं की यह भी मांग है कि इन कंपनियों को आदत लगने वाली
दवाइयां, ऐंटी ट्यूबरकुलर और हाई ऐंटीबायोटिक दवाइयों की बिक्री की अनुमति भी नहीं मिलनी चाहिए।
डेटा की गोपनीयता के मुद्दे पर ऑनलाइन फार्मा उद्योग के सूत्रों ने कहा कि इनका अनुपालन करना काफी आसान है।
