उद्योग/व्यापार

ईएसजी एजेंडा को आगे बढ़ाएंगे नियामक

Share If you like it

कंपनियां वे सभी चीजें करेंगी जिनकी उन्हें जरूरत है मगर पर्यावरण, सामाजिक एवं संचालन (ईएसजी) कार्यसूची को आगे बढ़ाने में नियम-कायदों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। बता रहे हैं अमित टंडन

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा गठित पर्यावरण, सामाजिक एवं संचालन (ईएसजी) समिति ने फरवरी में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। एचडीएफसी ऐसेट मैनेजमेंट के नवनीत मुणोत इस समिति के अध्यक्ष थे (मैं भी इस समिति का सदस्य था)। इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार कुछ व्यापक विषयों पर सार्वजनिक प्रतिक्रियाएं आमंत्रित की गई थीं।

इनमें सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा ईएसजी के संबंध में खुलासे के लिए नियामकीय ढांचा, प्रतिभूति बाजार में ईएसजी रेटिंग और म्युचुअल फंडों द्वारा ईएसजी में निवेश तीन प्रमुख विषय शामिल थे। सेबी ने ईएसजी रेटिंग्स प्रोवाइडर्स (ईआरपी) के लिए नियामकीय ढांचे पर भी अलग से सुझाव आमंत्रित किए थे।

सुझाव एवं प्रतिक्रियाओं के आधार पर सेबी निदेशकमंडल (बोर्ड) ने 29 मार्च को एक नियामकीय ढांचे पर हस्ताक्षर किए थे। इससे हमें इसका आकलन करने में मदद मिली है कि सेबी के नियमन की दिशा क्या होगा। हम पूर्ण नियमावली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बीच, हमें कुछ बिंदुओं पर अवश्य विचार करना चाहिए। मुणोत का मानना है कि सेबी ने डिस्क्लोजर-रेटिंग-इन्वेस्टमेंट इन तीनों पहलुओं पर ध्यान देते हुए एक वृहद दृष्टिकोण अपनाया है।

सबसे पहले खुलासा नियमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेबी ने बीआरएसआर (बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग) ढांचे का इस्तेमाल कर ईएसजी पर संबंधित जानकारी देना शीर्ष 1,000 कंपनियों के लिए अनिवार्य कर दिया है। यह वित्त वर्ष 2023 से प्रभावी हो गया है। वित्त वर्ष 2022 में यह स्वैच्छिक था। कंपनियों ने जानकारियां देनी तो शुरू कर दी हैं मगर कुछ विषयों का समाधान किया जाना जरूरी है।
कई ऐसे मामले हैं जिनका समाधान खुलासे के संबंध में होना है।

पहला मुद्दा यह है कि खुलासे को लेकर दुनिया कितनी दिलचस्पी दिखा रही है। वैश्विक स्तर पर दी जाने वाली जानकारियां अक्सर उन बातों से तालमेल नहीं बैठा पाती हैं जो भारतीय कंपनियों या अर्थव्यवस्था को आलोचना करती प्रतीत होती हैं। ‘अश्वेत हिस्साधारकों पर प्रतिकूल प्रभावों की पहचान के लिए रेशियल इक्विटी ऑडिट’ और ‘वित्तीय क्षेत्र की कंपनियों को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम या इस पर अंकुश लगाने के लिए कहना’ दो ऐसे ही उदाहरण हैं।

इनमें पहले मुद्दे के समाधान के लिए कंपनियों के पास कोई कारण नहीं है तो दूसरा उदाहरण हमारी वर्तमान राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती है।

इसके बाद ‘ग्रीनवॉशिंग’ का विषय आता है। कंपनियां अपने क्रियाकलापों के पर्यावरण पर होने वाले सकारात्मक असर को बढ़ा कर दिखाना है मगर वास्तव में ऐसा नहीं होता है। ‘ग्रीनवॉशिंग’ के विषय से जुड़ी बातों का समाधान नौ मानकों- बीआरएसआर कोर- पर आश्वासन पाकर किया जा सकता है। ये नौ मानदंड भारत में ईएसजी की विशिष्ट चुनौतियों को दर्शाते हैं।

उम्मीद की जा रही है कि बीआरएसआर कोर इन आंकड़े पर नजर रखने में सहायक होंगे। तर्कसंगत आश्वासन तभी दिया जा सकता है जब मानदंडों एवं उपायों को लेकर स्थिति स्पष्ट होगी।

इसे देखते हुए ये मानक तय किए गए हैं और ये वर्ष 2023-24 से शीर्ष कंपनियों के लिए अनिवार्य बनाए गए हैं। ऐसी कंपनियों की संख्या अगले दो वर्षों में 2026-27 तक बढ़ कर 1,000 हो जाएगी। कई इकाइयों के लिए उनके अपने परिचालन के अलावा आपूर्ति श्रृंखला पर भी निगरानी रखने की जरूरत है।

मुणोत कहते हैं, ‘बीआरएसआर खुलासे में तेजी लाने के लिए प्रस्तावित ढांचे का उद्देश्य अनुपालन पर आने वाली लागत को ध्यान में रखते हुए संबंद्ध, विश्वसनीय एवं तुलनात्मक आंकड़े की जरूरत पर ध्यान देना है।’

रेटिंग के मामले में ध्यान भारत केंद्रित मानकों एवं उपायों पर दिखाया गया है। एक अधिक मानकीकृत दृष्टिकोण पर जोर दिए जाने के लिए उद्देश्य न्यूनतम तय मानदंडों पर ध्यान देना है। हालांकि ईआरपी इनमें कुछ जोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। जैसा कि सेबी के लगभग सभी दिशानिर्देशों के साथ होता है, यहां पर भी ऐसी रेटिंग और इनके लिए दिए जाने वाले तर्कों के खुलासे पर जोर दिया गया है।

तीसरा स्तंभ निवेशक हैं। यद्यपि, हमारे बाजार में ईएसजी से संबद्ध थीम में प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में से 1.5 अरब डॉलर से भी कम रकम निवेश की गई है मगर वैश्विक स्तर पर यह अनुमान 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है। यह संकेत देता है कि भारतीय फंड प्रबंधन उद्योग जल्द ही इस थीम को अपना लेगा।

फंड इंगेजमेंट रिपोर्टिंग सहित ईएसजी पर और अधिक खुलासे की मांग कर सकते हैं। आने वाले समय में रकम का प्रवाह बढ़ने की उम्मीद के बीच ईएसजी एक मोटे थीम के बजाय अपनी एक विशिष्ट श्रेणी (जैसे लार्ज, मिड और स्मॉल-कैप) के लिए जाने जाएंगे। ऐसा होने पर अधिक सख्त रिपोर्टिंग की जरूरत बढ़ जाएगी।

अब प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए कि क्या सेबी और अन्य नियामक कंपनियों को ईएसजी से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए लगातार दिशानिर्देश देते रहेंगे। क्या निवेशक या शेयरधारकों की इसमें कोई भूमिका होगी? अमेरिका में शेयरधारकों ने 2022 की तरह ही (627) इस वर्ष ईएसजी विषय़ों पर लगभग 542 प्रस्ताव पारित किए हैं।

उम्मीद से उलट यूरोप में ऐसे प्रस्ताव कम चलन में हैं। इसकी एक वजह यह है कि कंपनियां कम सक्रिय हैं या रणनीति लागू करने में आगे नहीं रहती हैं। शेयरधारकों के प्रस्ताव सौंपने के लिए विभिन्न नियामकीय सीमा से भी इस बात का पता चलता है।

प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग के नियमों के तहत प्रस्तावों पर मतदान का अधिकार पाने के लिए इक्विटी स्वामित्व 2,000 डॉलर से 25,000 डॉलर तक हो सकता है। यूरोप में यह शेयर पूंजी के 5 प्रतिशत के साथ ऊंचे स्तर पर है मगर सदस्य देशों की तरफ से अलग-अलग पाबंदियां हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए नीदरलैंड में ऐसे प्रस्तावों पर निदेशकमंडल की अनुमति जरूरी होती है। पर्यावरण के लिए काम करने वाली पंजीकृत संस्था ‘क्लाइंटअर्थ’ ने यूरोप और एशिया (सिरिल अमरचंद मंगलदास भारत पर केंद्रित है) के लिए जलवायु संबद्ध शेयरधारकों के प्रस्तावों के लिए दो निर्देश तैयार किए हैं।

कोई प्रस्ताव रखने के लिए भारत में 10 प्रतिशत शेयरधारकों की स्वीकृति जरूरी होती है। जलवायु एवं सामाजिक विषय ऐसे होते हैं जिन्हे निवेशक प्रायः मतदान के लिए नहीं लाते हैं। लिहाजा, निवेशक कंपनियों से खुलासे, लक्ष्य और संक्रमण रणनीति के बारे में जानकारियां मांगेंगे। कंपनियां वे सभी चीजें करेंगी जिनकी उन्हें जरूरत है। मगर नियमन ईएसजी एजेंडा को आगे बढ़ाएंगे।

(लेखक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेस से जुड़े हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

Source link

Most Popular

To Top
%d bloggers like this: