गिरफ़्तारी वारंट क्यों जारी किए गए हैं?
ICC केवल तभी जाँच और मुक़दमा चला सकता है, जब सम्बन्धित देशों की राष्ट्रीय न्यायिक प्रणाली, न्यायालय की नज़र में, उन्हीं कथित अपराधों के लिए वास्तविक जाँच या अभियोजन नहीं कर रही हो.
ICC के प्रवक्ता फ़ादिल अब्दुल्लाह ने यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा है, “प्राथमिक ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय न्यायिक प्रणालियों की है. हालांकि, अगर कोई वास्तविक जाँच या अभियोजन नहीं हो रहे हैं, तो अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को जाँच करनी होगी और क़ानूनी शर्तों के अनुसार मुक़दमा चलाना होगा.”
“इसका मतलब है कि केवल कोई क़ानूनी प्रणाली होना बर ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि यह क़ानूनी प्रणाली, अपराधों या कथित अपराधों के सम्बन्ध में सक्रिय है.”
ध्यान रहे कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास के नेतृत्व में इसराइल में भीषण हमला किया गया था जिसके बाद ग़ाज़ा युद्ध भड़क उठा.
ग़ाज़ा में एक वर्ष से भी अधिक अवधि से जारी भीषण ग़ाज़ा युद्ध में कथित युद्ध अपराधों से सम्बन्धित वारंट संकेत देते हैं कि न्यायाधीशों को यह मानने के लिए उचित आधार मिले हैं कि संदिग्ध हस्तियाँ, ICC के अधिकार क्षेत्र के तहत अपराधों को अंजाम देने के लिए ज़िम्मेदार हैं.
यह तो बस पहला क़दम है
फ़ादिल अब्दुल्लाह कहते हैं कि मुक़दमा-पूर्व चरण में, प्रतिवादी पक्ष को, कार्यवाही की स्वीकार्यता को चुनौती देनी होती है. “समबन्धित देश या सम्बन्धित सन्दिग्ध के लिए यह सम्भव होता है कि वो अपने ख़िलाफ़ कार्रवाई को, ICC से रोकने की मांग कर सकते हैं. लेकिन यह मांग इस बात के साक्ष्य पर आधारित होनी चाहिए कि राष्ट्रीय स्तर पर उसी कथित आचरण के लिए वास्तव में गम्भीर अभियोग चल रहे हैं.”
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ICC, सन्दिग्धों अनुपस्थिति में मुक़दमे की सुनवाई नहीं करता है: मुक़दमा शुरू करने के लिए प्रतिवादियों को शारीरिक रूप से न्यायालय में उपस्थित होने की ज़रूरत होती है.
सभी प्रतिवादियों को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि वो ICC के समक्ष, सन्देह से परे निर्दोष साबित नहीं हो जाएँ.
प्रत्येक प्रतिवादी सार्वजनिक और निष्पक्ष कार्यवाही के हक़दार हैं. सन्दिग्ध व्यक्ति यदि और जब न्यायालय में पेश होते हैं, तो उन्हें ज़रूरत पड़ने पर बचाव दल प्रदान किया जाता है, और मुक़दमे को सुनवाई के लिए आगे बढ़ाने से पहले, आरोप पुष्ट किए जाने के लिए सुनवाई के चरण से गुज़रना पड़ता है.
प्रतिवादी जब एक बार प्रतिवादी अदालत के सामने पेश होते हैं, तो “आरोपों की पुष्टि” सुनवाई होती है, जिसमें न्यायाधीश बचाव पक्ष की बात सुनने के बाद तय करते हैं कि क्या मामले को मुक़दमे के चरण में ले जाने के लिए, अभियोक्ता के साक्ष्य अब भी पर्याप्त ठोस हैं.
अगर वे आगे बढ़ने का फ़ैसला करते हैं, तो बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष गवाहों को बुलाते हैं और सबूत पेश करते हैं. पीड़ितों के क़ानूनी प्रतिनिधियों को भी व्यक्तिगत रूप से अपनी टिप्पणियाँ पेश करने का अधिकार है.
फिर अदालत तय करती है कि प्रतिवादी निर्दोष हैं या दोषी, और उनकी सज़ा क्या होनी चाहिए.
अन्त में, प्रतिवादियों को, ICC केअपील चैंबर में अपील करने का अधिकार है, जो पाँच न्यायाधीशों से बना है, जो मुक़दमे से पहले के स्तर के तीन न्यायाधीशों और अन्य तीन ट्रायल न्यायाधीशों से अलग है.
ये वारंट कितने महत्वपूर्ण हैं?
इस सवाल का जवाब इस बात में निहित है कि अदालत को सबसे पहले तो स्थापित ही क्यों किया गया था. 2002 में स्थापित अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC), मानवता के विरुद्ध अपराधों, युद्ध अपराधों, जनसंहार और आक्रामकता के अपराध के अभियुक्तों की जाँच करने और उन पर मुक़दमा चलाने वाला दुनिया का पहला स्थाई, सन्धि-आधारित अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है.
वारंट यह संकेत देते हैं कि क़ानून के शासन को क़ायम रखा जाना चाहिए, तथा न्याय के लिए एक क़ानूनी मार्ग प्रदान करना चाहिए, जो हिंसा और प्रतिशोध के चक्र को तोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है.
ICC को मान्यता देने वाले देशों के लिए, इस तरह के वारंटों का समर्थन करना अनिवार्य
न्यायालय के पास अपने वारंट पर अमल कराने के लिए कोई पुलिस नहीं है तथा वह अपने आदेशों को लागू करने के लिए अपने सदस्य देशों पर निर्भर है.
इसका अर्थ यह है कि, यदि बिन्यामिन नेतन्याहू, सोआव गैलंट या मोहम्मद दीफ़, न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करने वाले 124 देशों में से किसी एक का दौरा करते हैं, तो सम्बन्धित देश के अधिकारियों को उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए तथा उन्हें नैदरलैंड में एक हिरासत केन्द्र में पहुँचाना चाहिए, जहाँ न्यायालय स्थित है. (मोहम्मद दीफ़ के बारे में इसराइल का दावा है कि उनकी मौत हो चुकी है, हालाँकि हमास की तरफ़ से इसकी पुष्टि नहीं की गई है).
यदि प्रतिवादियों के मुक़दमे में आने की सम्भावना नहीं है, तो वारंट क्यों जारी किए जाएँ?
फ़ादिल अब्दुल्ला ने कहा, “न्यायाधीशों ने साक्ष्यों तथा क़ानून के शासन की व्याख्या के आधार पर निर्णय लिया है, हमें इसका सम्मान करना चाहिए.”
“लोगों को यह विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि उनके लिए क़ानून उपलब्ध है, और उन्हें यह विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि न्याय किया जाएगा, क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो हम हिंसा और बदले के चक्र में बने रहने के अलावा, उनके लिए और क्या विकल्प छोड़ रहे हैं?”
ICC के बारे में
अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा नहीं है, लेकिन उनके बीच सहयोगात्मक और पूरक सम्बन्ध हैं.
ICC, रोम संविधि द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है, जिसे 1998 में अपनाया गया था और यह 2002 में लागू हुई थी.
इसकी स्थापना गम्भीर अन्तरराष्ट्रीय अपराधों से निपटने और राष्ट्रीय न्याय प्रणाली के कार्य करने में असमर्थ या अनिच्छुक होने पर, जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए की गई थी.