उद्योग/व्यापार

आरोपों से पूरी तरह बरी नहीं

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उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद इस सप्ताह अदाणी समूह की कंपनियों के शेयर खरीदने में निवेशकों की रुचि एक बार फिर बढ़ गई है। इस रिपोर्ट में इस साल जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में नियामकीय विफलताओं के संदर्भ में लगाए गए आरोपों के कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं।

सोमवार को अदाणी समूह की कंपनियों का संयुक्त बाजार पूंजीकरण करीब 82,000 करोड़ रुपये बढ़ गया जिसे कुल आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। मंगलवार को भी यह सिलसिला जारी रहा और समूह की कंपनियों का बाजार पूंजीकरण लगभग 60,000 करोड़ रुपये बढ़ गया।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में शेयरों की कीमतों में धांधली सहित अन्य आरोपों के बाद समूह की कंपनियों में धड़ाधड़ बिकवाली होने लगी थी। समूह पर दबाव इतना बढ़ गया कि उसे 20,000 करोड़ रुपये का अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) वापस लेना पड़ा। हिंडनबर्ग ने अदाणी समूह के शेयरों एवं बॉन्ड आदि में शॉर्ट पोजीशन ले ली थी। अदाणी समूह के शेयरों एवं बॉन्ड में बिकवाली से उसने तगड़ा मुनाफा कमाया होगा।

अदाणी समूह पर लगे आरोपों की जांच भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) कर रहा था और उसी दौरान उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में 2 मार्च को एक समिति का गठन कर दिया।

न्यायालय ने सेबी को इस मामले के कुछ खास पहलुओं की जांच का भी आदेश दिया। समिति के गठन के समय इस समाचार पत्र ने उल्लेख किया था कि चूंकि, सेबी मामले की जांच में जुट गया है इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि जांच पूरी होने तक समिति किसी निष्कर्ष पर कैसे पहुंच पाएगी। लगता है कुछ ऐसा ही हुआ है।

अन्य बातों के साथ समिति को इस बात की भी जांच करने के लिए कहा गया था कि अदाणी समूह की कंपनियों के मामले में नियामकीय स्तर पर तो लापरवाही नहीं बरती गई थी। जांच के तीन प्रमुख पहलू थेः न्यूनतम शेयरधारिता शर्तें, संबंधित पक्षों के लेनदेन का खुलासा और शेयरों के मूल्य में धांधली।

जैसा समिति ने पाया है, न्यूनतम शेयरधारिता की शर्तें इस बात पर निर्भर करती है कि क्या 12 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) सहित 13 इकाइयों ने अन्य बेनिफिशियल ओनर के मामले में नियमों का पालन किया है या नहीं।

उल्लेखनीय है कि एक कार्यशील समूह के सुझाव के बाद एफपीआई में आर्थिक हित रखने वाले वास्तविक नियंत्रक के संबंध में खुलासा करने की शर्त 2018 में समाप्त कर दी गई थी। यद्यपि एफपीआई ने धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत खुलासे किए हैं। हालांकि, सेबी 2020 से ही 13 विदेशी इकाइयों के मालिकाना नियंत्रण की जांच कर रहा है। सेबी को इन इकाइयों की परिसंपत्तियों में योगदान देने वाली 42 इकाइयों के बारे में पता चला है।

इन इकाइयों के वास्तविक लाभार्थियों के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध होने तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल होगा। संबंधित पक्षों के लेनदेन पर भी नियामक कुछ खास लेनदेन की जांच कर रहा है। एक बार फिर जांच पूरी होने तक इस बारे में कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा।

शेयरों की कीमतों में कथित धांधली के विषय पर नियामक ने कहा कि प्रणाली ने अदाणी समूह की कंपनियों से संबंधित 849 सूचनाएं (अलर्ट) दी थीं। इसके बाद चार रिपोर्ट तैयार हुई जिनमें दो हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले ही आ गई थी। हालांकि, बाजार नियामक आर्टिफिशल ट्रेडिंग का कोई सबूत नहीं मिला। चूंकि, नियामक अब भी समूह से जुड़े विभिन्न मामलों की जांच भी कर रहा है इसलिए नियामकीय चूक के दृष्टिकोण से मूल्यांकन करने के लिए समिति के पास बहुत संभावनाएं नहीं थीं। बे

हतर होगा कि जांच पूरी होने तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उपयुक्त नहीं होगा। शीर्ष न्यायालय ने सेबी को मध्य अगस्त तक जांच पूरी करने के लिए कहा है। एफपीआई के प्रमुख लाभार्थियों का पता लगाना काफी अहम होगा। हालांकि, शुद्ध बुनियादी स्तर पर यह समझना मुश्किल प्रतीत हो रहा है कि कोई निवेशक इतने ऊंचे मूल्य पर शेयर क्यों खरीदना चाहेगा।

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