हमास द्वारा इसराइल पर हमले और उसके पश्चात अक्टूबर 2023 में ग़ाज़ा पर इसराइल की जवाबी कारर्वाई के बाद से अब तक, 45 हज़ार से ज़्यादा फ़लस्तीनियों की जान जा चुकी है और एक लाख से अधिक घायल हुए हैं.
लगभग 90 फ़ीसदी ग़ाज़ावासी आन्तरिक रूप से विस्थापित हुए हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में लोगों को हवाई हमलों व लड़ाई से बचने के लिए कई-कई बार, एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
उन्हें भोजन और आश्रय खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है: लाखों घर तबाह हो चुके हैं, और तीन लाख 45 हज़ार लोग खाद्य सुरक्षा के भयावह स्तर का सामना कर रहे हैं.
जोनाथन डूमॉन्ट ने क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े के दौरे से वापस आने के बाद ग़ाज़ा में व्याप्त गम्भीर हालात को यूएन न्यूज़ के साथ साझा किया है.
“अब्दुल रहमान ने मुझसे कहा, ‘मुझे भोजन चाहिए.’ हम दक्षिण-पश्चिमी ग़ाज़ा के ख़ान युनिस शहर में थे, जहाँ खाने के लिए बेचैन लोगों को गर्म चावल परोसे जा रहे थे. पास में एक बच्चा इस डर से रोने लगा कि कहीं उसकी बारी आने से पहले ही विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा दिया जाने वाला यह भोजन ख़त्म न हो जाए.
अब्दुल रहमान ने अपने आसपास की इमारतों की ही तरह अपने सपने तहस-नहस होने का दर्द बयाँ करते हुए कहा, ‘मैं बहुत महत्वाकाँक्षी था. मेरे अनगिनत सपने थे. लेकिन अब मुझे केवल रोटी चाहिए. मैं रोटी तक नहीं ख़रीद सकता हूँ.’
मैं मानवीय राहतकर्मियों से भरी एक बस में सफ़र करके, अम्मान से 10 घंटे की यात्रा करते हुए एक दिन पहले ही ग़ाज़ा पहुँचा था. मैंने कुछ समय इसराइल के केरेम शलोम से ग़ाज़ा पट्टी को जाने वाली सीमा चौकी पर गुज़ारा था.
यह मानवीय सहायता सामग्री पहुँचाने वाले कुछ बचे-खुचे रास्तों में से एक है. दिसम्बर के शुरूआती दिनों में की गई यह 10 दिवसीय यात्रा, 15 महीने पहले युद्ध आरम्भ होने के बाद इलाक़े की मेरी पहली यात्रा थी.
वहाँ तत्काल ज़रूरतों के लिए आपूर्ति की बेहद कमी थी – जिसमें दवाओं के बक्से, भोजन व अन्य राहत सामग्री शामिल थी. इस सामग्री को ग़ाज़ा में भेजने की अनुमति के लिए सीमा पर इन्तज़ार किया जा रहा था, और जिन कुछ-एक ट्रक चालकों को अन्दर आने की अनुमति मिलती थी, वो तबाह हुई सड़कों, बेसब्र लोगों की भीड़ तथा हथियारबन्द गिरोहों से बचते हुए सामान पहुँचाते थे.
अमेरिका के डेट्रॉयट शहर के आकार के बराबर का ग़ाज़ा शहर, आज मलबे के पहाड़ में तब्दील हो चुका है. मैंने पिछले साल कई संघर्षरत क्षेत्रों का दौरा किया है – आपराधिक गुटों के संघर्ष से तबाह हेती, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य का पूर्वी हिस्सा, सूडान की युद्धग्रस्त राजधानी ख़ारतूम – लेकिन ग़ाज़ा में विनाश एक अलग ही पैमाने पर है.
एक तरफ, भूमध्यसागरीय समुद्री तट पर सुन्दर लहरें शान्ति का भ्रम दिलाती हैं, वहीं दूसरी ओर अन्तहीन विनाश का मंज़र दिखाई देता है, सुलगती इमारतों से उठता काला धुआँ.
यह दूसरे युद्ध क्षेत्रों से इस तरह भी अलग है कि यहाँ से ग़ाज़ावासियों के बचकर भागने का कोई रास्ता नहीं है. वो पूरी तरह फँसे हुए हैं.
और भुखमरी आसमान छू रही है. 90 फ़ीसदी से अधिक आबादी संकट या उससे भी बदतरीन स्तर पर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. विशेषज्ञों के नवीनतम आकलन के अनुसार, तीन लाख से अधिक लोगों को विनाशकारी स्तर पर भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है – जोकि खाद्य असुरक्षा का उच्चतम स्तर है.
‘लोग भूखे हैं, और गुस्से में हैं’
यूएन खाद्य एजेंसी, WFP द्वारा भेजे जा रहे भोजन में से जितनी मात्रा को ग़ाज़ा पट्टी में प्रवेश करने की अनुमति मिल रही है, वो भूखे लोगों की ज़रूरतों का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही पूरा कर सकता है. कई महीनों से, हमें राशन में बार-बार कटौती करने के लिए मज़बूर किया जा रहा है.
दिसम्बर में, हम 11 लाख लोगों तक केवल 10 दिनों का भोजन पहुँचा सके, जिसमें डिब्बाबन्द सामान, टमाटर का पेस्ट, तेल और गेहूँ का आटा शामिल है.
इसराइली घेराबन्दी वाले उत्तरी ग़ाज़ा में लोग सबसे अधिक भूख से पीड़ित हैं. पिछले दो महीनों में, मुश्किल से ही राहत सामग्री को यहाँ आने की अनुमति मिल सकी है.
रोटी बनाने वाले घट्टास हकौरा, ग़ाज़ा पट्टी के उत्तरी हिस्से में स्थित एक WFP समर्थित बेकरी में काम करते हैं. उन्होंने बताया कि आजकल लोगों के लिए ब्रैड सबसे महत्वपूर्ण भोजन हो गया है, क्योंकि यह बहुत सस्ती है.
पुरुष एवं महिलाएँ अलग-अलग पंक्तियों में खड़े होकर, तीन शेकेल यानि प्रति पैकेट 1 अमेरिकी डॉलर से कम क़ीमत वाली पीटा ब्रैड ख़रीद रहे थे.
घट्टास हकौरा ने कहा, ‘लोग भूखे हैं और गुस्से में हैं. उन्होंने अपने घर, अपना कामकाज, अपने परिवार खो दिए हैं. न तो माँस उपलब्ध है, न ही सब्ज़ियाँ – और अगर सब्जियाँ उपलब्ध हैं भी, तो वो बहुत महंगी हैं.’
25 किलो गेहूँ के आटे का बोरा 150 अमेरिकी डॉलर की क़ीमत में बिक रहा है. एक ऐसे क्षेत्र में, जहाँ कभी खट्टे फलों, सब्ज़ियों और स्ट्रॉबेरी की फ़सलों की बहार थी, मैंने ग़ाज़ा शहर के बाज़ार में छोटी मिर्चें 195 अमेरिकी डॉलर प्रति किलो की क़ीमत में बिकती देखीं. हालाँकि कोई ख़रीद नहीं रहा था. किसी के पास इतना धन ही नहीं था.
अपनी छोटी बेटी को गोद में लिए हुए इब्राहिम अल-बलावी ने मुझे बताया कि उसने अपने जीवन में अभी तक एक गिलास दूध नहीं पिया है. उसे युद्ध के अलावा कुछ पता ही नहीं है.
यह ग़ाज़ा के बहुत से माता-पिता के लिए चिन्ता का विषय है, क्योंकि यह एक ऐसी जगह है जहाँ आप चौबीसों घंटे हवा, ज़मीन व समुद्र से आती ड्रोन एवं विस्फोटों की आवाज़ें सुनते हैं.
ख़ान युनिस में हमारे द्वारा खाद्य वितरण किए जाने के बाद चार बच्चों की माँ हिन्द हसौना ने मुझसे कहा, ‘मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चों का भविष्य भी अरब देशों में रहने वाले अन्य बच्चे के समान हो. वो एक सभ्य जीवन जी सकें, अच्छे कपड़े पहनें, अच्छा खाना खाएं और अच्छा जीवन जिएं. सबसे महत्वपूर्ण बात है डर से मुक्ति – अरब देश के किसी भी आम बच्चे की तरह.”
धूप में सड़ रहे शव
आज, हिन्द हसौना के बच्चों को पानी लाने के लिए भी डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. उनका निवास, उनका तम्बू हवा से आसानी से गिर सकता है या वहाँ सर्दियों में बारिश का पानी भर सकता है.
इस आश्रय में उनके बच्चे WFP द्वारा वितरित चावलों के अपने छोटे हिस्से को चम्मच से खा रहे थे. शायद यह दिन का उनका एकमात्र भोजन रहा होगा. एक छोटे लड़के ने धीरे-धीरे अपनी प्लेट का हर आख़िरी दाना चुन-चुनकर साफ़ किया, उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खिल आई थी.
बच्चों पर युद्ध का सबसे बुरा असर पड़ रहा है. मैंने ख़ान युनिस में भोजन वितरण के लिए जाते समय मलबे में एक मरा हुआ घोड़ा देखा. पास ही, एक छोटी लड़की भोजन की तलाश में कूड़े के ढेर से कुछ चुन रही थी.
बाद में, अपने बख़्तरबंद वाहन में ग़ाज़ा शहर की ओर जाते हुए, ग़ाज़ा के उत्तरी व दक्षिणी भाग को विभाजित करने वाले सैन्यीकृत गलियारे के पास हमने चारों तरफ़ धूप में सड़ते शवों को देखा. कुछ दूरी पर, महिलाओं और बच्चों का एक छोटा समूह दिखा, जो अपना सामान लेकर उसी दिशा में जा रहा था. वो गर्मी से बेहाल और थके हुए लग रहे थे.
बड़े होने पर ग़ाज़ा के बच्चों पर इन अनुभवों का क्या प्रभाव पड़ेगा? उनकी पीढ़ी का क्या होगा?
तबाही के बीच, ग़ाज़ावासी जीवन की हर उम्मीद को गले लगा रहे हैं. ख़ान युनिस में, अबू बिलाल ने अपने बर्बाद हुए घर को खोदकर, उसके मलबे से दीवारों का पुनर्निर्माण किया. यह पहले एक बहुमंज़िला इमारत थी, जिसके सीमेंट स्लैब के ज़रिये एक नाज़ुक रहने की जगह बनाई गई. उन्होंने मुझे अपना आश्रय स्थल दिखाया, जिसमें एक बुनियादी शौचालय और अस्थाई प्लास्टिक सिंक था.
अबू बिलाल ने अपने आश्रय को ‘ख़तरनाक’ बताते हुआ कहा कि यह तूफ़ान या हवाई हमले से आसानी से ढह सकता है.
पहले घनी आबादी वाला क्षेत्र रहे इलाक़े में नबील अज़ाब ने मुझे अपने घर के अवशेष दिखाए. पहले एक टैक्सी चालक के रूप में काम करने वाले नबील ने उस वाहन के टूटे-मुड़े हिस्से की ओर इशारा किया जो कभी उनकी आजीविका का साधन हुआ करता था.
ग़ाज़ा के अन्य परिवारों की तरह, वो भी कई-कई बार विस्थापित हो चुके हैं, और उन्हें तम्बू वाली एक बस्ती से दूसरी बस्ती में जाने को मजबूर होना पड़ा. दक्षिणी शहर रफ़ाह में उनके अस्थाई आश्रय पर हवाई हमला हुआ, जिसमें वह और परिवार के अन्य सदस्य घायल हो गए.
इससे उनके सब्र का बाँध टूट गया. वो ख़ान युनिस में अपने क्षतिग्रस्त घर से मलबा साफ़ करके वापस वहीं रहने चले गए. उनकी चार मंज़िला इमारत,एक रेतीले पहाड़ के ऊपर अभी भी झुकी हुई खड़ी है. उनका परिवार जीवित रहने के लिए, नीचे की ज़मीन पर सलाद और अन्य हरी सब्जियाँ उगाता है. लेकिन यह जीने के लिए पर्याप्त नहीं है.
अज़ाब ने मुझसे कहा, ‘जब मैं अपनी छोटी सी बेटी को खाने के लिए रोते देखता हूँ तो बहुत असहाय महसूस करता हूँ. मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता. कुछ भी नहीं.”‘