डेनिस फ़्रांसिस ने, विश्व में शान्ति व सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख संस्था – सुरक्षा परिषद के आकलन पर हुई चर्चा को सम्बोधित करते हुए कहा कि ढाँचागत सुधार के बिना, परिषद की कार्यकुशलता और वैधता, निश्चित रूप से प्रभावित होती रहेगी.
उन्होंने कहा, “दुनिया भर के अनेक क्षेत्रों में, हिंसा और युद्धों का फैलाव जारी है, जबकि संयुक्त राष्ट्र, मुख्य रूप से सुरक्षा परिषद में मतभेदों के कारण, असमर्थ नज़र आता है.”
डेनिस फ़्रांसिस ने कहा कि दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है और सुरक्षा परिषद, अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा क़ायम रखने की प्रमुख प्रभारी के अपने शासनादेश को पूरा करने में, “ख़तरनाक रूप में नाकाम हो रही है”.
”ढाँचागत सुधार की अनुपस्थिति में, सुरक्षा परिषद की कार्यकुशलता और वैधता नकारात्मक रूप में प्रभावित होती रहेगी – जिसके साथ-साथ, स्वयं संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता और प्रासंगिकता भी प्रभावित होती रहेगी.”
नवीन तात्कालिकता (Urgency)
सुरक्षा परिषद में समान प्रतिनिधित्व का मुद्दा तो, वर्ष 1979 से ही यूएन महासभा में छाया रहा है, मगर दुनिया भर में बढ़ते टकरावों के मद्देनज़र, सुधार के आहवान भी सघन हुए हैं.
इस वर्ष सितम्बर में, यूएन महासभा की वार्षिक उच्चस्तरीय जनरल डिबेट में भी, सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा छाया रहा, जिसमें परिषद की सदस्य संख्या बढ़ाया जाना भी शामिल था.
यूक्रेन में रूसी आक्रमण और मध्य पूर्व में इसराइल-फ़लस्तीन संकट जैसे हाल के टकरावों के मामलों में कोई एकीकृत रुख़ अपनाने में, सुरक्षा की असमर्थता ने, सुधार की तात्कालिकता को और प्रबल बना दिया है.
उदाहरण के लिए, सुरक्षा परिषद, इसराइल-फ़लस्तीन पर अपना प्रथम प्रस्ताव बुधवार, 15 नवम्बर को पारित करने में सफल हो सकी, वो भी, पाँच सप्ताह पहले यह संकट भड़कने के बाद, कोई प्रस्ताव पारित करने के चार प्रयास विफल होने के बाद.
यथास्थिति, अव्यवस्था की ही तरह ख़तरनाक
डेनिस फ़्रांसिस ने अपने भाषण में महासभा को यह तक चेतावनी दे डाली कि सुरक्षा परिषद में गतिरोध की स्थिति, किसी अराजकता का सामना करने की ही तरह, चुनौतीपूर्ण हो सकती है.
उन्होंने सुधारों पर नवीन, नवाचारात्मक सोच का आग्रह करते हुए कहा, “मैं इस गरिमापूर्ण सदन को आगाह करता हूँ कि यथास्थिति भी किसी अराजक स्थिति की ही तरह चुनौतीपूर्ण और कठिन हो सकती है. हम ऐसे रुख़ व दृष्टिकोणों को जारी नहीं रख सकते, जो हमें साथ लाने में नाकाम होते हैं.”
यूएन महासभा अध्यक्ष ने वर्ष 2024 में होने वाले ‘भविष्य के सम्मेलन’ की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा, “विश्वास में फिर से जान फूँकने के लिए एक रास्ता, एकजुटता और सुलह-सफ़ाई को मज़बूत करना हो सकता है.”
उन्होंने सदस्य देशों से गहरी जड़ें जमाए अपने ज़िद्दी रुख़ों और दृष्टिकोणों से हटकर लचीलापन अपनाने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने के साथ-साथ, सुरक्षा परिषद के सुधारों को, ऐसे व्यावहारिक क़दमों के माध्यम से, प्रोत्साहन देने का आहवान किया, जो प्रभावकारी हों और आज की दुनिया की विविधता का पूर्ण प्रतिनिधित्व करें.
