अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर निगरानी के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञ रिचर्ड बैनेट ने कहा कि पकट्या प्रान्त के गारदेज़ के खेलकूद मैदान में हुई यह घटना, मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और सार्वजनिक दंड दिए जाने के चिन्ताजनक रुझान को दर्शाती है.
उन्होंने सोशल मीडिया पर बुधवार को अपने एक सन्देश में कहा, “मैं आज इस भयावह सार्वजनिक मृत्युदंड की निन्दा करता हूँ. ये नृशंस सज़ा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हैं और इन्हें तत्काल रोका जाना होगा.”
11 सितम्बर 2001 को अमेरिका में आतंकी हमलों के बाद, अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ सैन्य कार्रवाई की थी, और तालेबान को सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया था.
मगर उसके दो दशक बाद, अगस्त 2021 में तालेबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता को फिर हथिया लिया था, और सार्वजनिक रूप से मौत की सज़ा देने, कोड़े लगाए जाने और अन्य प्रकार के दंड दिए जाने की अनुमति दी थी.
देश में मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किए जाने के लिए दुनिया भर से की गई अपीलों के बावजूद, तालेबान ने यह क़दम उठाया था. सज़ा देने के इन तरीक़ों पर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गहरी चिन्ता व्यक्त की है.
स्वैच्छिक रोक की मांग
अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन ने अपने वक्तव्य में कहा कि सार्वजनिक तौर पर दी गई मौत की सज़ा दिए जाने की घटनाएँ, अफ़ग़ानिस्तान के लिए तयशुदा अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों के विपरीत हैं और इन पर रोक लगानी होगी.
यूएन मिशन ने सत्तारूढ़ तालेबान से आग्रह किया है कि सार्वजनिक मृत्युदंड को अंजाम दिए जाने पर स्वैच्छिक रोक लगाई जानी चाहिए और मौत की सज़ा के प्रावधान को ख़त्म कर देना चाहिए.
“हम समुचित प्रक्रिया व निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई के अधिकार का सम्मान करने की अपील करते हैं, विशेष रूप से क़ानूनी प्रतिनिधित्व तक पहुँच मुहैया कराने की.”
मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति
अफ़ग़ानिस्तान में सार्वजनिक मृत्युदंड, देश में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति के व्यापक रुझान को दर्शाता है. वर्ष 2021 के बाद से अब तक, तालेबान द्वारा 70 से अधिक आदेश व फ़रमान जारी किए गए हैं, जिनमें लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिक स्तर तक सीमित रखना, अधिकाँश पेशों में महिलाओं के कामकाज पर पाबन्दी लगाना और उन्हें पार्क, जिम व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर जाने से रोकना समेत अन्य प्रतिबन्ध हैं.
महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था (UN Women) की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने हाल ही में सुरक्षा परिषद को बताया था कि अफ़ग़ान महिलाओं को ना केवल इन दमनकारी क़ानून से डर है, बल्कि वे इन्हें मनमुताबिक़ ढंग से लागू किए जाने से भी संशकित हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के लिए यूएन की विशेष प्रतिनिधि रोज़ा ओटुनबायेवा ने सितम्बर में कहा था कि तालेबान प्रशासन के कारण देश में स्थिरता का माहौल पनपा है, मगर देश के आम नागरिकों की समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान ना देने वाली नीतियाँ अपनाकर वे इस संकट को गहरा बना रहे हैं.