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अफ़ग़ानिस्तान: यूएन तालेबान के साथ सम्पर्क क़ायम रखेगा

अफ़ग़ानिस्तान: यूएन तालेबान के साथ सम्पर्क क़ायम रखेगा

मीडिया ख़बरों के अनुसार, तालेबान की नैतिकता पुलिस ने शुक्रवार को कहा था कि वो अफ़ग़ानिस्तान में यूएन सहायता मिशन के साथ अब कोई सहयोग नहीं करेंगे. 

संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न पदाधिकारियों ने पिछले सप्ताह पारित किए गए इस नैतिकता क़ानून को देश के भविष्य के लिए एक स्याह परिदृश्य क़रार देते हुए इसकी आलोचना की थी.

संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने शुक्रवार को न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में नियमित प्रैस वार्ता में कहा, “मेरा ख़याल है कि हम अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की मौजूदगी को मिटा देने के फ़ैसले की आलोचना करते रहे हैं.”

सम्पर्क व संवाद क़ायम रहेगा

प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अफ़ग़ानिस्तान में सभी पक्षों और हितधारकों के साथ संवाद व सम्पर्क क़ायम रखेगा और सुरक्षा परिषद के शासनादेश के अनुसार, देश में अपना काम भी जारी रखेगा.

उन्होंने एक बार फिर तालेबान प्रशासन से, दरअसल कूटनैतिक सम्पर्क व संवाद के लिए और अधिक रास्ते खोले जाने का आग्रह भी किया.

क़ानून के दमनकारी प्रावधान

सदगुण और अवगुण नामक यह क़ानून बीते सप्ताह पारित किया गया था. यह क़ानून महिलाओं पर कई तरह की पाबन्दियाँ लगाता है, जिनमें ये नियम भी शामिल हैं कि महिलाओं को ऐसे कपड़े पहनने होंगे जिनमें उनका पूरा शरीर ढँकना चाहिए.

क़ानून में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की आवाज़ें सुना जाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है और किसी पुरुष सम्बन्धी के साथ के बिना, उनके सफ़र पर भी पाबन्दियाँ लगाई गई हैं.

घर के बाहर किसी महिला की आवाज़  सुने जाेन को, एक नैतिक हनन क़रार दिया गया है.

इस क़ानून में पुरुषों को अपनी दाढ़ियाँ बढ़ाने का आदेश दिया गया है, वाहन चालकों को संगीत बजाने से रोकने और मीडिया को लोगों की तस्वीरें प्रकाशित करने से भी रोका गया है.

सरकारी अधिकारियों को इस क़ानून का उल्लंघन किए जाने के मामलों में लोगों को गिरफ़्तार किए जाने और दंड दिए देने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए हैं.

ये क़ानून 1990 की याद दिलाता है

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा है कि इस क़ानून को पारित किया जाना, अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों के गहन दमन को दिखाता है और इसमें 1990 के दशक में तालेबान शासन की झलक नज़र आती है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि ये क़ानून इस बात के पुख़्ता सबूत पेश करता है कि तालेबान ने फिर से सत्ता वापसी के बाद भी अपने नज़रिए और रुख़ में कोई बदलाव नहीं किया है.

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने इस क़ानून में, तालेबान के नैतिकता इंस्पैक्टरों को बेतहाशा शक्ति दिए जाने पर भी गहन चिन्ता व्यक्त की है जिसमें वो तथाकथित नैतिक अपराधों के मामलो में, लोगों को मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाने के साथ-साथ दंड भी दे सकते हैं. और ऐसा अक्सर सन्देह के आधार पर ही हो सकता है, जिसमें ना तो सबूतों की ज़रूरत होती है और ना ही क़ानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाता है.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों सहित अन्तरराष्ट्रीय पक्षों से, अफ़ग़ानिस्तान के लिए सिद्धान्तों पर आधारित एक समन्वित रणनीति तैयार करने का आग्रह किया है जिसमें मानवाधिकारों को प्राथमिकता दी जाए, और विशेष रूप में महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता पर अधिक ज़ोर हो.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा आधारित मानवाधिकार परिषद से नियुक्त होते हैं और उनका काम किसी देश में ख़ास स्थिति या किसी मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार करके सौपने के लिए होती है. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ देशों की सरकारों और संयुक्त राष्ट्र से स्वतंत्र होते हैं, वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन भी नहीं मिलता है.

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