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अफ़ग़ानिस्तान: महिलाओं की भागेदारी के बिना, कोई भविष्य नहीं

अफ़ग़ानिस्तान: महिलाओं की भागेदारी के बिना, कोई भविष्य नहीं

इस तरह की रौंगटे खड़े कर देने वाली आपबीतियाँ और विचार, अफ़ग़ान महिलाओं और दुनिया भर में उनके समर्थकों ने, सोमवार को, यूएन मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किए. 

इस कार्यक्रम का आयोजन, अफ़ग़ान समाज में महिलाओं की भागेदारी और उनके अधिकारों को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए किया गया था.

अफ़ग़ानिस्तान की राजनयिक रह चुकी और अब अफ़ग़ानिस्तान पर महिलाओं के फ़ोरम के लिए काम कर रहीं असीला वारदक ने इस कार्यक्रम में कहा, “अब, पहले से कहीं ज़्यादा, ये बहुत अहम है कि अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य से सम्बन्धित तमाम मामलों में महिलाओं को सार्थक ढंग से शामिल किया जाए.”

असीला वारदक ने ज़ोर देकर कहा कि देश का भविष्य “आधी आबादी को अलग-थलग करके नहीं बनाया जा सकता है”, और ये कि “महिलाओं को समाधान का हिस्सा बनाया जाए, नाकि उन्हें दरकिनार कर दिया जाए.”

संयुक्त राष्ट्र की एकजुटता

इस कार्यक्रम का सहआयोजन आयरलैंड, इंडोनेशिया, स्विटज़रलैंड और क़तर ने, ‘अफ़ग़ानिस्तान पर महिला फ़ोरम’ के साथ मिलकर किया.

यह फ़ोरम यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता है कि देश के भविष्य के बारे में किसी भी संवाद और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णय-प्रक्रिया में, अफ़ग़ान महिलाओं को शामिल किया जाए.

यह कार्यक्रम यूएन महासभा के 79वें सत्र की उच्चस्तरीय जनरल डिबेट शुरू होने से एक दिन पहले आयोजित किया गया.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने भी, अपनी भारी व्यस्तता के बावजूद, इस कार्यक्रम के आरम्भ में शिरकत करके, अफ़ग़ान महिलाओं के लिए, अन्तराष्ट्रीय एकजुटता प्रकट की.

उन्होंने कहा, “हम अफ़ग़ान महिलाओं की आवाज़ों को बुलन्द करना जारी रखेंगे और उनसे देश के जीवन में अपनी पूर्ण भूमिका निभाने की पुकार लगाते हैं, देश की सीमाओं के भीतर और वैश्विक स्तर पर.”

एंतोनियो गुटेरेश ने ऐलानिया अन्दाज़ में कहा कि संयुक्त राष्ट्र “दुनिया भर में कहीं भी, लिंग आधारित भेदभाव को एक सामान्य स्थिति बन जाने की इजाज़त कभी भी नहीं देगा.”

उन्होंने कहा कि “अफ़ग़ानिस्तान में जो कुछ हो रहा है उसकी तुलना, हाल के अतीत में, कुछ अति दमनकारी व्यवस्थाओं के साथ की जा सकती है.”

अदृश्य महिलाएँ

तालेबान ने अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी के बाद से ही, महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों में लगातार कटौती की है.

देश में सत्ताधीन ताक़त के रूप में तालेबान ने, 70 से अधिक आदेश, निर्देश और फ़तवे जारी किए हैं, जिनमें लड़कियों की प्राइमरी स्तर की शिक्षा को सीमित किया जाना और महिलाओं को पार्कों, जिन और अन्य सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग करने से भी रोक लगा दी गई है.

स्वीडन की पूर्व विदेश मंत्री और ‘अफ़ग़ानिस्तान पर महिला फ़ोरम’ की अध्यक्ष मारगॉट वॉलस्ट्रॉम ने इस कार्यक्रम का संचालन करते हुआ कहा, “हम बहुत जोखिम भरे हालात में मिल रहा हैं, और अफ़ग़ानिस्तान में इस समय एक महिला होना, शायद इतिहास में सबसे ख़तरनाक बात है.”

उन्होंने कहा, “तालेबान का नवीनतम आदेश महिलाओं को ख़ामस कर देना चाहता है, जिसमें उनके गाने-गुनगुनाने पर भी पाबन्दी है, और उन्हें अदृश्य बना देना चाहता है. अलबत्ता यहाँ संयुक्त राष्ट्र में नहीं. आज हम उनकी आवाज़ों और उनकी चिन्ताओं को सुनेंगे.”

मज़बूती व एकता की ज़रूरत

अफ़ग़ानिस्तान की महिला मामलों की मंत्री रह चुकीं हबीबा सराबी ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 (2000) को लागू किए जाने की मांग की, जिमसें शान्ति व सुरक्षा प्रयासों में, महिलाओं की भूमिका की पुष्टि की गई है.

उन्होंने साथ ही, अन्य सिफ़ारिशों के अलावा, महिलाओं के विरुद्ध तमाम तरह के भेदभाव के उन्मूलन पर यूएन कन्वेंशन पर अमल किए जाने का भी आग्रह किया.

इस बीच, अफ़ग़ान संसद की पूर्व उपाध्यक्ष फ़ौज़िया कूफ़ी ने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के लिए एक पैग़ाम जारी किया. उन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा, “यह एक लड़ाई है. हम इसे जीतकर रहेंगे.”

फ़ौज़िया कूफ़ी ने सुरक्षा परिषद से, अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर एकजुट होने का आहवान करते हुए, देशों से, “अपने राजनैतिक मतभेद एक तरफ़ रख देने का आग्रह भी किया, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसके सुरक्षा नतीजे आपकी राजधानियों में भी हो सकते हैं, भले ही अगर मानवाधिकार प्रभाव नहीं भी हों.”  

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