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अत्यधिक गरमी से बच्चों की सेहत के लिए बड़ा ख़तरा

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – UNICEF की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

यूएन बाल एजेंसी की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है कि अत्यधिक गरमी में इज़ाफ़ा हो रहा है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य, उनके रहन-सहन और दिनचर्या बाधित हो रहे हैं.

यूनीसेफ़ की इस रिपोर्ट में 1960 के समय और 2020 से 2024 के दौर में अत्यधिक गरमी वाले दिनों की संख्या की तुलना की गई है, यानि जिन दिनों में तापमान 35 डिग्री सैल्सियस (95 डिग्री फ़ोरेनहाइट) से अधिक रहा हो.

रिपोर्ट में अत्यधिक गर्मी वाले दिनों की संख्या में बढ़ोत्तरी की रफ्तार और पैमाने पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की गई है जिससे दुनिया भर के लगभग 50 करोड़ बच्चे प्रभावित हो रहे हैं. उनमें से बहुत से बच्चों के पास तो इस गरमी का सामना करने के लिए पर्याप्त ढाँचा या सेवाएँ उपलब्ध ही नहीं हैं.

देशों के स्तर के आँकड़े

यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में देशों के स्तर पर आँकड़ों की पड़ताल में पाया गया है कि 16 देशों में बच्चों को छह दशक पहले के समय की तुलना में अ,ब एक महीने से भी अधिक समय के बराबर, अत्यधिक गरम दिनों का सामना करना पड़ता है.

उदाहरण के लिए दक्षिण सूडान में, बच्चों को इस दशक में एक साल में औसतन 165 अत्यधिक गरम दिनों का सामना करना पड़ा है, जबकि 1960 में ऐसे दिनों की संख्या 110 थी. पैरागुवाय में अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या, 1960 में 36 से बढ़कर 71 पर आ गई है.

वैश्विक नज़र से देखें तो पश्चिमी और मध्य अफ़्रीका में अत्यधिक गरम दिनों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है और वहाँ लगभग 12 करोड़ 30 लाख बच्चे अत्यधिक गरम दिनों से प्रभावित हैं. यह उस क्षेत्र में बच्चों की कुल संख्या का 39 प्रतिशत हिस्सा है.

लातीनी अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र में क़रीब 4 करोड़ 80 लाख बच्चों को ऐसे इलाक़ों में रहना पड़ रहा है जहाँ अत्यधिक गरम दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है.

‘बच्चे कोई छोटे वयस्क नहीं हैं’

अत्यधिक गरमी में रहने से शरीर में भारी दबाव उत्पन्न होता है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अनेक तरह के ख़तरे उत्पन्न होते हैं.

अत्यधिक गर्मी के कारण बाल कुपोषण होता है और गरमी सम्बन्धित अनेक ग़ैर-संचारी बीमारियाँ होती हैं, और बच्चे ऐसी संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने के जोखिम में पहुँच जाते हैं जो अत्यधिक गरमी में होती हैं, जैसेकि मलेरिया और डेंगू.

सबूतों से मालूम होता है कि तंत्रिका विकास, मानसिक स्वास्थ्य और कुल रहन-सहन भी प्रभावित हो रहा है.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है, “बच्चे कोई छोटे वयस्क नहीं हैं. उनका शरीर अत्यधिक गर्मी के लिए बहुत संवेदनशील होता है. बच्चों का शरीर बहुत जल्दी गरम होता है, और उसकी तुलना में ठंडा धीमी गति से होता है.”

“अत्यधिक गरमी विशेष रूप से शिशुओं के लिए, उनकी तेज़ हृदय गति के कारण बहुत ख़तरनाक है, इस तरह बढ़ते तापमानों की स्थिति, बच्चों के लिए और भी अधिक चिन्ताजनक है.”

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